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श्रृंगार से ये तन तुम, यूँ और मत सजाओ,
छूते हुए लगे डर, फौलाद अब बनाओ।।

मेहंदी सुहाग चूड़ा, कमजोरी की निशानी,
हाथों में लो कलम तुम, तलवार सा चलाओ।।

मेहँदी भी है पिया की, चूड़ी भी है पिया की,
कुछ तो दिमाग खोलो, अपना भी कुछ बताओ।।

जीवन गया ये अपना, पानी के भाव बहकर,
अपना नहीं रुका पर, बेटी का तुम बचाओ।।

देते हो दूसरों को, उपदेश जिंदगी के,
कुछ तो करो शरम अब, खुद भी तो आजमाओ।।

छोडो मुहब्बतों को, जीना नहीं है आसां,
है जिंदगी जहर जो, दो घूंट फिर पिलाओ।।

ये वक़्त भर गया है, हर जख्म दिल का मेरे,
पर दाग कह रहा है, मुझको न तुम भुलाओ।।

भीतर सभी के हमने, इक आग जलते देखी,
अब वक़्त आ गया है, लौ और भी बढ़ाओ।।

बनकर रही नदी तुम, सागर रहा ज़माना,
जीवन भरा "सरिता", सैलाब तुम वो लाओ ।।

सरिता पन्थी
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on August 9, 2016 at 11:09am

आदरणीया सरिता जी नारी को आधार बना कर कही गई ग़़ज़ल का स्‍वागत है आपके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार बहर पर गजल को देखा । 

मेहंदी सुहाग चूड़ा, कमजोरी की निशानी,
हाथों में लो कलम तुम, तलवार सा चलाओ।। इस शेर में आप स्‍वयं ही नारी के शृगांर को  कमजाेरी की निशानी बता रही है  कैसे ?

देते हो दूसरों को, उपदेश जिंदगी के,
कुछ तो करो शरम अब, खुद भी तो आजमाओ।।

 कुछ शर्म तो करो अब  खुद भी तो आजमाओ ।  शर्म को इस तरह से भ्‍ाी उपयोग में ले सकती हैंं आप ।  क्‍या आजमाने की बात हो रही हैै 

छोडो मुहब्बतों को, जीना नहीं है आसां,
है जिंदगी जहर जो, दो घूंट फिर पिलाओ।।

 है जह्र जिंदगी जो दो घूंट फिर पिलाओ  इस मिसरे में में जह्र (21) को  आप इस तरह भी प्रयोग कर सकती है 

बनकर रही नदी तुम, सागर रहा ज़माना,
जीवन भरा "सरिता", सैलाब तुम वो लाओ ।।  मकते में सरिता बह्र के अनुसार वज्‍न में नहीं है 

आपके प्रयास के लिये बहुत बहुत बधाई स्‍वीकार करेंं 

Comment by sarita panthi on August 7, 2016 at 9:23am
आदरणीय ब्रजेश कुमार बृज जी ह्र्दय से आभार आपका
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2016 at 9:48pm

बहुत सुन्दर बहुत सार्थक.....बधाई 

Comment by sarita panthi on August 6, 2016 at 7:01pm
आदरणीय इस ग़ज़ल को 221 2122 221 2122 मीटर में लिखने का प्रयास किया है मैंने आपसे सुधार की अपेक्षा रखती हूं

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 10:05am

आदरणीया सरिता जी , नारी अस्मिता कर अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइया ।

आदरणीया , यहाँ गज़ल के ऊपर बहर लिखने की परम्परा है , ताकि सीखने सिखना का उद्देश्य पूरा हो , बहर निभाने मे अगर कुछ कमी रह गई हो तो उचित सलाह जानकार दे सकें ।
मेरा अन्दाज़ा मात्रिक बहर ( बहरे मीर ) का  है । मक्ते के सानी  को पढने मे कुछ अटकाव है ।

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