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उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर कूप के यारो कभी बाहर नहीं होते ।1
समर्थन पाक को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी कश्मीर पर इतने कड़े तेवर नहीं होते।2
पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी मासूम हाथो में लिए पत्थर नहीं होते।3
बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर तब छिपे भीतर नहीं होते।4
समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा इस सियासत में भरे जोकर नहीं होते।5
बताए राज रावण के सभी वो राम को चाहे
विभीषण देश के यारो कभी जेवर नहीं होते।6
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर '
Comment
आ0 भाई विजय जी आपका सानिन्ध्य पा गजल सम्मानित हुई । उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद । मार्ग दर्शन करते रहिए ।
खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
आ० अमिता जी ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई गुमनाम जी इस स्नेह के लिए आभार .
ग़ज़ल का हर शेर ....... हार्दिक बधाई
वाह भाई जी वाह खूब ............ ग़ज़ल अच्छी लगी ........ बधाई ........
आ0 भाई गोपालनारायण जी अपनी उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 राजेश दी आपसे प्रशंसा पा गजल का मान अत्यधिक बढ़ गया । इस स्नेह के लिए आभार ।
आ0 भाई आषुतोष जी, गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ० धामी जी बहुत सामयिक गजल कही आपने , सादर.
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