१२२२ १२२२ १२
जदल से ऊबती मेरी ग़ज़ल
मुहब्बत ढूँढती मेरी ग़ज़ल
कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ
कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल
कदूरत के समंदर चार सू
किनारा ढूँढती मेरी ग़ज़ल
न खिड़की है न रोशनदान है
जिया बिन सूखती मेरी ग़ज़ल
सुलगते तल्खियों के अर्श पे
सितारे गूँथती मेरी ग़ज़ल
लिखे हर बार लफड़े रोज के
कसम से टूटती मेरी ग़ज़ल
अमन का रंग गर मिलता यहाँ
दिलों को लूटती मेरी ग़ज़ल
ख़ुलूसे-उल्फतों का जाम पी
नशे में झूमती मेरी ग़ज़ल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जी बिलकुल स्पष्ट कर पाए अब आपकी पारखी नजर को धन्यवाद कहना तो बनता ही है आदरणीय .
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सुलगते वस्तुतः विशेषण है जो अपनी संज्ञा की विशेषता बताने केलिए प्रयुक्त हुआ है. अब वह तल्ख़ियाँ जैसे शब्द के ठीक पहले प्रयुक्त हुआ है तो उस शब्द की संज्ञा के सभी गुणों को संतुष्ट करेगा न ? अब आप बताइये कि वह अर्श के पहले है ही नहीं तो अर्श संज्ञा के गुणों को कैसे संतुष्ट करता दीखे ? यह तो व्याकरण दोष हुआ न ? मेरा यही निवेदन है.
अक्सर लोग कहते हैं - दो फूलों की मालाएँ ले आओ. क्या यह वाक्य शुद्ध है ? नहीं.. क्योंकि कहने वाले का तात्पर्य है फूलों की दो मालाएँ ले आओ.
विश्वास है, मैं स्पष्ट कर पाया.
सादर
आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी आपका दिल से बहुत-बहुत आभार |
आ० सौरभ जी ग़ज़ल पर शिरकत और दाद दोनों के लिए तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ |दरअसल सुलगते शब्द तल्खियों के अर्श के लिए प्रयोग किया है |उम्मीद है मैं कन्फ्यूजन दूर कर सकी |
वाह खूब .......... इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
सुलगते तल्ख़ियाँ या सुलगती तल्ख़ियाँ ? हम तनिका कन्फ़्यूज़ हूँ ..
ग़ज़ल तो अच्छी होनी ही है. दाद दाद !
आ० विजय निकोर जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखननवाजी के लिए दिल से आभार |
आ० रामबली जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका .
//कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ
कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल//......... वाह
खयालों में ताज़गी है.....सारी गज़ल ही अच्छी लगी। बधाई।
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