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खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय शिज्जु भाई.... सुधिजनों की टिप्पणी से मुझे भी व्यक्तिगत फायदा हुआ, उत्तम रचना कर्म के लिए आपको बधाई तथा सभी का शुक्रिया .... जिनकी वजह से शेर की बारीकी को समझ सका |
बात अच्छी निकली है और अच्छी चर्चा भी हुई है. बहुत खूब है शिज्जू भाई. दाद कुबूल कीजिये.
अभी तक रोशनाई दवात ही बताई जा रही है. जबकि आदरणीय समर साहब ने बेहतर इशारा किया है.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! सादर |
आदरणीय शिज्जू भाई बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.
एक शंका है - ख़्वाबों की स्याही में लम्हे डुबा कर रख लिए थे तो फिर उसी से लिखना था उसके लिए अश्कों को जहमत देने की क्या जरुरत थी. अश्कों को कागज बनाया जा सकता था. क्योकि ख्वाबों की इंक लम्हे की कलम तो हो गई मगर लिखा किस पर ? कागज है ही नहीं और किस्सा लिखा गया. अश्कों पे लिख सकते है पर बात नहीं बनेगी. ये पूरी किस्सा लिखाई ऐसे 'कम्प्लीट' होगी-
अश्कों की रोशनाई में सपनें डुबो-डुबो
लम्हों पे लिक्खा किस्सा मिटाया नहीं गया
हा हा हा .... बस ऐसे ही खयाल आया. सादर
इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा
मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया
हकीकत निगारी और जज्बात की अक्कासी साथ-साथ ! बहुत खूब !!
जी ...आपका मिसरा बहर में है ,,बस लयात्मकता कम थी इसलिए सुझाव दिया ...
सादर
वाह वाह वाह
क्यों तुझसे सर बता ये उठाया नहीं गया,,
बधाई
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