जब से पिया गए परदेस ...
प्रेम हीन अब
इस जीवन में
कुछ भी नहीं है शेष
जब से पिया गए परदेस//
नयन घट
सब सूख गए
बिखरे घन से केश
जब से पिया गए परदेस//
दर्पण सूना
हुआ शृंगार से
सूना हिया का देस
जब से पिया गए परदेस//
लगे दंश से
बीते मधुपल
दीप जलें अशेष
जब से पिया गए परदेस//
बिरहन का तो
हर पल सूना
रहे अश्रु न शेष
जब से पिया गए परदेस//
क्षणिक संचय
प्रेम क्षणों का
बना श्वासों का देस
जब से पिया गए प्रदेश//
स्मृति अमृत
वो निस्सीम नेह का
बना जीवन सुधा विशेष
जब से पिया गए परदेस//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बहुत सुंदर बिरह से ओतप्रोत रचना!
प्रेम हीन अब
इस जीवन में
कुछ भी नहीं है शेष
जब से पिया गए परदेस//
आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत शानदार प्रस्तुति. 'जब से पिया गए परदेस' की टेक से प्रस्तुति को गुनगुनाते हुए आनंद आ गया. पंक्तियों के संयोजन में शब्द-कलों के पूरे न होने से गेयता बाधित सी लगी इसलिए प्रयास किया है. शायद आपको पसंद आये. आपकी प्रस्तुति देखकर खुद को रोक नहीं पाया सिर्फ इसलिए यह संशोधन निवेदित कर रहा हूँ-
प्रेम हीन अब इस जीवन में
कुछ न रहा है शेष
जब से पिया गए परदेस//
नयनों के घट सूख गए सब
बिखरे घन से केश
जब से पिया गए परदेस//
सूना दर्पण, शृंगार कहाँ
सूना मन का देस
जब से पिया गए परदेस//
लगे दंश क्या बीते मधुपल
दीप प्रज्ज्वलन शेष
जब से पिया गए परदेस//
बिरहन का तो हर पल सूना
अश्रु रहे ना शेष
जब से पिया गए परदेस//
आ. Er. Ganesh Jee "Bagi" जी प्रस्तुति में निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
//क्षणिक संचय
प्रेम क्षणों का
बना श्वासों का देस
जब से पिया गए प्रदेश//
वाह वाह, क्या कहने आदरणीय सरना साहब, खुबसूरत नवगीत की प्रस्तुति हुई है, बहुत बहुत बधाई प्रेषित है.
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