1. रोशनी ....
क्या ज़मीं
क्या आसमां
हर तरफ
चटख़ धूप है
सहर से सांझ तक
उजालों की बारिश है
बस, तुम आ जाओ
कि मेरी तारीकियों को
रोशनी मिले //
२. यकीन ....
चटख धूप में भी
अब्र चैन नहीं लेते
आधी सी धूप में
आधी सी बारिश है
जैसे अधूरी सी ज़िंदगी की
अधूरी से ख्वाहिश है
सबा भी बेसब्र नज़र आती है
लगता है कोई रूठा पल
मिलन को बेकरार है
शायद कोई वादा
मेरी तन्हाई में
आरज़ू-ऐ-शरर बन के
मेरे शानों पर सर रख
तुम्हारे होने का
यकीन दे दे //
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
बहुत सुन्दर दिल तक पँहुचते उद्दगार ...हार्दिक बधाई आ० सुशील सरना जी
आदरणीय सौरभ सर प्रस्तुति आपकी सराहना पा कर धन्य हुई। आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
भावभीनी नज़्म की मुलामियत से पगी (यहाँ पगना का अर्थ सराबोर होना है) आपके दोनो भावोद्गार अनुपम हैं, आदरणीय सुशील सरनाजी. इनकी तासीर थोड़ी अलग ही होती है.
बहुत-बहुत खूब ! शुभेच्छाएँ
आदरणीय Shyam Narain Verma जी प्रस्तुति को अपने स्नेह से संवारने का हार्दिक आभार।
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय |
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