जब से पिया गए परदेस ...
प्रेम हीन अब
इस जीवन में
कुछ भी नहीं है शेष
जब से पिया गए परदेस//
नयन घट
सब सूख गए
बिखरे घन से केश
जब से पिया गए परदेस//
दर्पण सूना
हुआ शृंगार से
सूना हिया का देस
जब से पिया गए परदेस//
लगे दंश से
बीते मधुपल
दीप जलें अशेष
जब से पिया गए परदेस//
बिरहन का तो
हर पल सूना
रहे अश्रु न शेष
जब से पिया गए परदेस//
क्षणिक संचय
प्रेम क्षणों का
बना श्वासों का देस
जब से पिया गए प्रदेश//
स्मृति अमृत
वो निस्सीम नेह का
बना जीवन सुधा विशेष
जब से पिया गए परदेस//
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रामबली गुप्ता जी प्रस्तुति में निहित भावों को आपकी आत्मीय प्रशंसा ने जो मान दिया है उसके लिए आपके तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीया KALPANA BHATT जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
वाह | बेहद सुंदर रचना | बधाई स्वीकारें आदरणीय सुनील सरना सर |
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रत्युत्तर के लिए हार्दिक आभार। सर इसका ज्ञान तो है मुझे पर इस पर एडिटिंग करते ही पोस्ट पुनः लाइन में लग जाती है। शायद कमेंट्स भी डिलीट हो जाते हैं इसीलिये मैंने ये बात कही थी। फिर भी सुझाव के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर, मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार. पटल पर एडिटिंग संभव है बस आप इसी पृष्ठ पर ऊपर दिख रहे आप्शन को क्लिक कीजिये एडिटिंग के लिए आप्शन आ जायेगा -
आदरणीय तेजवीर सिंह जी रचना को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वमनकर जी प्रस्तुति में निहित भावों को इतना मान देने के लिए आपके दिल की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार। आपके द्वारा रचना का संशोधित रूप भी मन को बहुत भाया। पटल पर तो एडिटिंग संभव नहीं लेकिन मैं इसे अपने मूल सृजन में अवशय अपनाऊंगा। आपकी इस नेह का दिल से आभार सर।
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