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एक ग़ज़ल ओबीओ के नाम

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज पर तुझको देखना है मुझे
त्र में उसने ये लिखा है मुझे

स्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे

क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा फल   
ब्र करना तो आ गया है मुझे

ज तेरे बग़ैर ये जीवन
र्क जैसा ही लग रहा है मुझे

लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
श्क़ तेरा बुला रहा है मुझे

र्म गुफ़्तार से "समर" देखो
आज फिर ज़ैर कर लिया है मुझे

_________

ओज :- ऊँचाई
नस्ल-ए-नव :- नई नस्ल
बुर्ज :- गुम्बद
गुफ़्तार :- बोलचाल

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:22pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,इस सम्बन्ध में आपसे फ़ोन पर गुफ़्तुगू हो चुकी है,ग़ज़ल आपको पसंद आई,आपने उसकी रूह को महसूस किया,मेरा लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 3, 2016 at 11:21pm

आदरणीय समर साहब, आपकी ग़ज़ल को लेकर सुरूचिपूर्ण भावना सहज ही समझ में आ जाने वाली बात है. आपसे मिल कर यही अहसास होता है कि यह कितनी उत्कट है. ग़ज़ल आपकी रूह में बसती है. आज आपको जितनी आशाएँ ओबीओ से हैं, ओबीओ को भी एक मंच के हिसाब से उतनी ही उम्मीद आप जैसे सदस्य से है. यही अन्योन्याश्रय (अभिन्न) सम्बन्ध किसी रचनाकार को आवश्यक माहौल तो देता ही है, मंच को भी क़ामयाब ऊँचाई देता है. 

हाँ, यह ज़रूर है, कि हम सभी प्रशिक्षु हैं, सीख रहे हैं. यह सीखने का दौर हमारी ता ज़िन्दग़ी बना रहे. 

आमीन

Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:17pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,ओबीओ से जुड़कर मैं समृद्ध हुवा हूँ ,यह सब आप लोगों की मुहब्बत है कि ये सब कर पा रहा हूँ ,आपको ग़ज़ल पसंद आई,आपने उसकी रूह को महसूस किया,मेरा लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:13pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब, आपकी मुहब्बतों पर मुझे यक़ीन है ,दुआ कीजिये कि आगे भी ओबीओ की ख़िदमत इसी तरह करता रहूँ, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:09pm
जनाब नादिर ख़ान जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:06pm
जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,

//यह मिसरा भविष्य में हमारे तरही मुशायरे के लिए परफेक्ट रहेगा//

इसका मतलब है अभी मुझे एक और ग़ज़ल कहना है जनाब ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 11:02pm
जनाब गणेश जी 'बाग़ी' जी आदाब,ओबीओ के छः वर्ष पूर्ण होने की ख़ुशी में 1 april को ख़ुशियाँ और ग़म कॉलम में अपनी ग़ज़ल का तोहफ़ा पेश कर चुका हूँ जो कम दोस्तों की नज़र से गुज़रा ,मुलाहिज़ा फ़रमाऐं :-

ख़ुदा बढ़ाऐ तेरी आन-बान ओबीओ
दुआ है ऊँची रहे तेरी शान ओबीओ

हर इक विधा के यहाँ जानकार हैं मौजूद
बहुत बड़ा है तेरा ख़ानदान ओबीओ

यहाँ पे कोई बड़ा है,न कोई है छोटा
तेरी नज़र में हैं सब इक समान ओबीओ

तेरे बग़ैर तो जीना मुहाल है मेरा
कि तुझ में बसती है अब मेरी जान ओबीओ

ख़ुदा के फ़ज़्ल से छः साल हो गए पूरे
दुआ है महके यूँही गुलसितान ओबीओ

हालिया ग़ज़ल मेरी तरफ़ से अपने परिवार को एक ख़ास तोहफ़ा है, आपने ग़ज़ल की रूह को महसूस किया, मेरा लिखना सार्थक हुवा,ऐसे ही स्नेह बनाए रखें,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 10:51pm
जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब आदाब,जी ,एडिट कर दिया है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 10:49pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,आपको ग़ज़ल पसंद आई,मेरा लिखना सार्थक हुवा,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2016 at 10:46pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,लगता है कि शायद ग़ुब्बारे में हवा भरने की बारी आपकी है,हा हा हा...
ग़ज़ल आपको पसंद आई,आपने उसकी रूह में झाँक कर देखा,उसे महसूस किया,मेरा लिखना सार्थक हो गया,अस्ल में मैं कहने से ज़्यादा कर के दिखाने में यक़ीन रखता हूँ ,ओबीओ में मेरी जान बसती है ,इस से आप ब ख़ूबी वाक़िफ़ हैं,मैं ओबीओ का नाम अदब के आसमान की ऊँचाईयों पर देखना चाहता हूँ लेकिन मजबूरी यह है कि तख़लीक़ी अमल के सिवा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है,आप सभी की मुहब्बतों पर मुझे यक़ीन है ,आपकी दुआऐं साथ रहीं तो इस से ज़्यादा कर के दिखाने की कोशिश करूँगा।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

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