For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितने थक गए हैं 

ये लम्बे तन्हा रास्ते 
सृजन और संहार की 
इनमें सदियाँ समाई हैं 
किसी के सपने लड़खड़ाये हैं 
किसी आंखें डबडबाई हैं //


ये रास्ते नहीं जानते 
किस बशर की 
मंज़िल कौन सी है 
फिर भी ये हर बशर को 
मंज़िल तक पहुंचाते हैं 
अपनी मंज़िल से बेख़बर ये रास्ते 
तमाम उम्र फिर किसी बशर को 
उसकी मंज़िल तक पहुंचाने के लिए 
वहीं खड़े रह जाते हैं//

 

खामोश से इन रास्तों के 
हर फासले पत्थर पर 
इनकी उम्र लिख दी जाती है 
जैसे जैसे इस उम्र बढ़ती है 
मंज़िल करीब नज़र आती है 
और कभी कभी मरीचिका भी बन जाती है //


प्रेमी पथिक इस उम्र के पत्थर पर 
बैठकर बतियाते हैं 
आने वाले कल के सपने सजाते हैं 
और वृद्ध इस पर बैठकर 
अपनी थकी साँसों से 
शेष उम्र का अंदाजा लगाते हैं 
मुसाफिर आते हैं जाते हैं 
और ये उम्र के पत्थर 
मील के पत्थर बन जाते हैं 

ये हर मौसम में 
रास्तों का साथ निभाते हैं //


बशर इन रास्तों से कुछ सीख नहीं पाता 
बस रास्तों के सीनों पर 
अपने बशर होने के 
अहम की ठोकर छोड़ जाता है

जाने क्यों इंसां समझ नहीं पाता 
रास्तों की उम्र 
सहनशीलता से कभी कम नहीं होती //


इंसान अपने दम्भ के साथ 
इन्हीं मूक रास्तों पर बढ़ते बढ़ते 
अपना वज़ूद खो देता है 
रास्ते वहीं रह जाते हैं 
अंज़ामे अहम पर मुस्कुराते हैं //


ये रास्ते 
साथ साथ चलते हैं 
पर कभी इन्सां सा 
अहम नहीं करते हैं//

 

सुशील सरना 
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 353

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2016 at 7:49pm

आदरणीय  सतविन्द्र कुमार जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2016 at 5:00pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। नेट प्रॉब्लम से आभार प्रगट करने में विलम्ब हुआ, क्षमा चाहूंगा। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 8, 2016 at 7:58am
ये रास्ते
साथ साथ चलते हैं
पर कभी इन्सां सा
अहम नहीं करते हैं.......

बहुत सुंदर भाव आदरणीय।
Comment by रामबली गुप्ता on May 7, 2016 at 11:16pm
ये अतुकांत के शिल्प पर रचित कविता कालजयी रचना है आदरणीय। जो भाव और तथ्य इसमें निहित हैं अपने आप में मानक और गूढ़ हैं। नमन आपकी लेखनी को।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service