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गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये
सारा पानी शराब हो जाये
उसके वालिद को देख इश्क मेरा
हड्डी वाला कबाब हो जाये
क्या जरूरत है खोलने की लब
जब नजर से जबाब हो जाये
मेरी नजरों के रुख पे पड़ते ही
हाथ उसका नकाब हो जाये
साथ उनके गुजारे जो लम्हे
लिख सकूँ तो किताब हो जाये
साक़िया बात कल की कल होगी
आज का तो हिसाब हो जाये
आज जीभर पिला मुझे साकी
आशु मुफलिस नवाब हो जाये
.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रामबली जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ
प्रिय जान भाई ..रचना को आपका स्नेह मिला इसके लिए ह्रदय से धन्यवाद स्वीकार करें सादर
आदरणीय श्याम जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से हौसला मिलता है ..सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय सुशील जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय समर कबीर सर .आप अपना बहुमूल्य समय हमें देते हैं और आपके मशविरे से हमारी दृष्टी को पैनापन मिलता है .आपके सुझाव के अनुरूप परिवर्तन कर रहा हूँ ..मतले के बारे में परामर्श देने का कष्ट करें ताकि इसे ठीक किया जा सका मैं आपके इशारे को पूरी तरह समझ नहीं पा रहा हूँ सादर प्रणाम के साथ
इस खूबसूरत रचना की हार्दिक बधाई |
आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुंदर अशआर लिखे हैं आपने। इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।
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