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ग़ज़ल -- पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया। ( दिनेश कुमार )

2122--2122--2122--212

पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया
ज़लज़ला कुछ बेबसों के सारे गौहर ले गया

ज़िन्दगी के खुशनुमा लम्हों से वो महरूम है
शाम को जो साथ अपने घर में दफ़्तर ले गया

हौसला, हिम्मत, ज़वानी, ख़्वाहिशें, बे-फिक्र दिल
वक़्त का दरिया मेरा सब कुछ बहा कर ले गया

सारी दुनिया जीत कर भी हाथ खाली ही रहे
वक़्त-ए-रुख़सत इस जहाँ से क्या सिकन्दर ले गया

छु न पाये हाथ उसके जब मेरी दस्तार को
तैश में आकर वो काँधे से मेरा सर ले गया

जब हुआ ससुराल में नव-ब्याहता का दिल उदास
इक हवा का झोंका उसको पल में पीहर ले गया

मुझको महफ़िल में दिखानी थी तख़य्युल की उड़ान
मैं बिना पर के परिन्दों को फ़लक़ पर ले गया

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2016 at 7:49pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ. वर्मा साहिब।
Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2016 at 7:47pm
शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब। इनायत आपकी।
Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2016 at 7:18pm
शुक्रिया आदरणीय सुशील सरना सर।
Comment by Abha saxena Doonwi on May 21, 2016 at 7:10pm

आदरणीय  दिनेश जी , नमस्कार बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है  आपकी ..इसी तरह आपकी लेखनी चलती रहे ऐसी मेरी शुभ कामना है ..

Comment by रोहिताश्व मिश्रा on May 21, 2016 at 2:20pm
Vaah sir...
Comment by Anuj on May 20, 2016 at 6:28pm

मुझको महफ़िल में दिखानी थी तख़य्युल की उड़ान
मैं बिना पर के परिन्दों को फ़लक़ पर ले गया

वाह! क्या बात है!

आदरणीय दिनेश जी,

व्यंग की इस धार के लिए जितनी दाद दी जाय कम है.

सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on May 20, 2016 at 12:43pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 
Comment by Samar kabeer on May 19, 2016 at 6:48pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 9:12pm

पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया

ज़लज़ला कुछ बेबसों के सारे गौहर ले गया

ज़िन्दगी के खुशनुमा लम्हों से वो महरूम है

शाम को जो साथ अपने घर में दफ़्तर ले गया

बहुत खूब आदरणीय दिनेश जी .... कितने प्यारे अहसास पिरोये हैं आपने अपनी इस दिलकश ग़ज़ल में ... वाह। इस दिलकश पेशकश के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर _/\_

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