For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"हेलो,बहना क्या हाल है,ससुराल में सब ठीक है ना "
"क्या ठीक है भैया "
"अरे क्या हो गया,किसी नें कुछ कहा क्या ?
"अभी 2 सप्ताह ही हुए हैं आये और सभी खाना बनाने को कह रहे हैं "
"अच्छा,किसकी इतनी हिम्मत है,जो तुमसे खाना बनवायेगा "
"अरे,ये जो बुड्डी है ना वही,आप तो जानते हो भैया मुझे खाना बनाना......"
"रो,मत पगली,तू चिंता ना कर,ज्यादा बोलेंगे तो....तू जानती है ना "
"क्या भैया मैं समझी नही "
"अरे तू टेंशन ना ले,तेरा ये वकील भाई कब काम आयेगा .ज्यादा जुबान चलेगी तो घरेलू हिंसा,दहेज प्रथा........
तू समझ गयी ना..."


मौलिक व अप्रकाशित

Views: 673

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by maharshi tripathi on June 9, 2016 at 10:52pm
बिल्कुल सही कहा आ.Rahilaजी,लघुकथा पर प्रतिक्रिया देने हेतु,शुक्रिया !!!
Comment by maharshi tripathi on June 9, 2016 at 10:50pm
प्रतिक्रिया देने हेतु आभार आ.सीमा सिंह जी !!
Comment by maharshi tripathi on June 9, 2016 at 10:48pm
आ.राजेश कुमारी जी,रचना को पसंद करने और प्रतिक्रिया देने हेतु,आभार !!!
Comment by maharshi tripathi on June 9, 2016 at 7:58pm
आ.विजयशंकर जी,लघुकथा को पसंद करने हेतु आपका आभार,
आपने सही कहा हर चीज़ मशीन नही कर सकती,और हम पूर्वी सभ्यता की तरफ़ अग्रसर हो रहे है !!!
अब क्या करे सब आराम की जिंदगी जीना चाहते हैं,इसके लिये सब किसी भी हद तक जा सकते हैं !!!
Comment by maharshi tripathi on June 9, 2016 at 7:49pm
आ.नीता कसार जी,लघुकथा पर आकर प्रतिक्रिया हेतु आभार !!!
Comment by Rahila on June 9, 2016 at 10:52am
औरतों के हक में बने कानून का दुरूपयोग कर जो लोग कानून से इस तरह का खिलबाड़ करते है,वो भूल जाते है कि इससे बेशक़ वो अपना पड़ला भारी कर लेगें लेकिन रिश्तों का पड़ला ताउम्र के लिये हल्का हो जायेगा । बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर जी! सादर बधाई ।
Comment by Seema Singh on June 9, 2016 at 8:14am
बहुत सामयिक समस्या पर ध्यानाकर्षित करती कथा...आधुनिकता की दौड़ में घर परिवार रसोई जैसे काम पिछड़ी सोच में शामिल कर दिए गए हैं और दुःखद बात ये है कि बेटियो को बहुआयामी व्यक्तित्व विकसित करने की सीख देने के स्थान पर उसने अपने ही उनको दिग्भर्मित कर रहे हैं। इस भाव को स्पष्टता से उकेरती कथा पर ह्रदय से बधाई आ० महर्षि त्रिपाठी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 9, 2016 at 7:57am

ये आज की ज्वलंत समस्या है कूकिंग के नाम से तो आजकल लडकियाँ दूर भागती हैं इस समस्या को केन्द्रित कर आज के दहेज़ व् प्रताड़ना घरेलु हिंसा के लिए जो क़ानून बने हैं उनका किस तरीके से दुरूपयोग हो रहा है इस मुद्दे पर प्रकाश डाला है बहुत अच्छी लघु कथा बनी है आपको बहुत बहुत बधाई महर्षि त्रिपाठी जी .

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2016 at 1:39am
कहानी और शीर्षक , दोनों , सही हैं। हम किस दिशा में जा रहे हैं ,आधुनिक्ता के नाम पर क्या और कहाँ से सबक ले रहें हैं , समझना मुश्किल है। जिस पाश्चात्य संस्कृति और परिवेश का सन्दर्भ देकर अपनी सुदृढ़ संस्कृति को हम तज रहे हैं , वहां की वास्तविकता बहुत ही कठोर हैं। यूरोप , अमेरिका , लैटिन अमेरिका , सभी जगह, परिवार न्यूक्लियर ( पति, पत्नी और उनके बच्चे ) होते हैं। नौकर की संस्कृति है नहीं , घरेलू काम के लिए जो " हेल्प " लोग बुलाते हैं वे प्रति घंटा भुगतान लेते हैं , वे खुद अपनी कार से आते / आतीं हैं। उनका पारिश्रमिक बहुत अधिक होता है। उन्हें भी केवल उच्च आय वाले ही वहन कर पाते हैं , वह भी एक या दो घंटे प्रतिदिन ही , या उससे भी कम। अब प्रश्न उठता है , घर तो चलना ही है, खाना तो बनना ही है , बच्चे तो पलने ही हैं , बच्चे भी प्रायः एक दो तक सीमित नहीं होते। माना बहुत से काम मशीनी होते हैं पर करने तो पड़ते हैं , अब पति और पत्नी ही यदि घर में हैं तो वे ही करेंगे , कोई और नहीं. अत: प्रश्न उठता है कि हम घर का काम नहीं करेंगे , यह संस्कृति आई कहाँ से। यह हमारी ही हमें देन है , और इसने एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न की है जिससे परिवार में बुनियादी समस्याएं उठ रहीं हैं , विवाद उत्पन्न हो रहें हैं।
एक बात और अधिकांशतः लोग दुनिया में अपनी संस्कृति की मूल भावना और प्रवृत्तियों से समझौता नहीं करते , दूसरे को देख कर तो बिलकुल नहीं। और स्त्री और पुरुष , दोनों बहुत परिश्रमी होते हैं। शायद आम भारतीय की कल्पना से बहुत इतर। वे घर के किसी काम में शर्म नहीं अनुभव करते हैं।
फिर हमने यह सब ( पाश्चात्य के नाम पर ) कहाँ से पाया या अपनाया ? शायद इसके लिए हम ही कहीं दोषी हैं।
सम्प्रति तो आपको बहुत बहुत बधाई इस सारगर्भित प्रस्तुति लिए आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , सादर।
Comment by Nita Kasar on June 8, 2016 at 9:23pm
आज की जवंलंत समस्या पर आधारित है कथा,जो क़ानून महिलाऔ की सुरक्षा के लिये बनाये गये उनका इसी तरह दुरूपयोग हो रहा है,ससुराल वालों के ख़िलाफ़ ठोस हथियार की तरह इस्तेमाल किये जा रहे है ।बधाई आपको आद०महर्षि त्रिपाठी जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
yesterday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service