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ज़बाँ दिल की सुख़नवर बोलता है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

ज़बाँ दिल की सुख़नवर बोलता है
वो सारी बातें खुलकर बोलता है

हमारी खाक़सारी की बदौलत
जिसे देखो, अकड़कर बोलता है

वो, जिसको पूजती है सारी दुनिया
ये नादाँ उसको पत्थर बोलता है

सियासत से जो वाकिफ़ ही नहीं है
सियासी मसअलों पर बोलता है

ज़ुबाँ का ज़ह'र बाहर आ न जाए
वो ले के मुँह में शक्कर, बोलता है

जुबानें कट चुकी हैं क़ायदों की
यहाँ अब सिर्फ पॉवर बोलता है

तुम्हारा शीशा-ए-दिल चूर होगा
ज़माना मुझसे अक़्सर बोलता है

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 10:40pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय जयनित जी, दाद कुबूल करें

Comment by Ravi Shukla on July 4, 2016 at 2:48pm

आदरणीय जयनित जी बहुत ही अच्‍छी गजल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करेंं

हमारी खाक़सारी की बदौलत
जिसे देखो, अकड़कर बोलता है बढिया बात कहीे आने बधाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 2:38pm

भाई जय्नित जी ..इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें .

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 15, 2016 at 6:33pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी उपस्थिति व सराहना के लिए आभारी हूँ।
सादर!
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 15, 2016 at 6:32pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी,मेरी रचना पर उपस्थित होने व अपना विचार रखने के लिए हार्दिक आभारी हूँ आपका।
सादर!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:46am

आदरणीय जयनित भाई , शुरू त आखिर हरेक शे र के लिये आपको दिल से बधाइयाँ ! लाजवाब गज़ल हुई है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 13, 2016 at 11:53am

वो, जिसको पूजती है सारी दुनिया
ये नादाँ उसको पत्थर बोलता है----वाह वाह बहुत खूब 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है जयनित भैया हार्दिक बधाई 

चौथे शेर में तकाबुले रदीफ़ दोष देख लें 

सियासत से जो वाकिफ़ ही नहीं है---नहीं वो कर सकते हैं 

मकते के उला की बह्र पर संदेह हैं 

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 12, 2016 at 7:40pm
क्षमा चाहता हूँ,
"मौलिक व अप्रकाशित" लिखना भूल गया।

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