‘भूकंप’
“सेठ साहब, ये बुढ़िया रोज आती है और इस दीवार को छू छू कर देखती है फिर घंटो यहाँ बैठी रहती है मैं तो मना कर-कर के थक गया लगता है कुछ गड़बड़ है जाने सेंध लगवाने के लिए कुछ भेद लेने आती है क्या” चौकीदार ने कहा |
“माई, कौन है तू क्या नाम है तेरा और तेरा रोज यहाँ आने का मकसद क्या है”? साहब ने पूछा |
“जुबैदा हूँ सेठ साहब, आपने तो नहीं पहचाना पर आपके कुत्ते ने पहचान लिया अब तो ये भी बड़ा हो गया साहब देखिये कैसे पूंछ हिला रहा है”|
सेठ दीन दयाल भी ये देखकर हैरान रह गया और अपने दिमाग पर जोर देकर जुबैदा को पहचानने की कोशिश करने लगा|
“सेठ जी , आपका ये घर और दीवार मेरे पति ने और मैंने ही तो मिलकर चिनवाई थी इस दीवार की छाँव में बैठकर हम दोनों रोटी खाते थे ये टॉमी जो उस वक़्त छोटा सा था कभी-कभी एक लड़के के साथ आता था हम रोटी का पहला टुकड़ा इसे खिलाते थे| साहब उसके कुछ दिन बाद लम्बी बीमारी से मेरा पति चल बसा|
न जाने क्यूँ मुझे इस दीवार की छाँव में आज भी सुकून मिलता है इसे छूती हूँ तो लगता है कि वही सीमेंट से भरा तसला मेरे हाथों से मेरा पति ले रहा है बस वही सुकून पाने मैं रोज चली आती हूँ साहब, आपको एतराज है तो अब नहीं आऊँगी”|
“नहीं माई, बैठो मैं अभी आता हूँ” ये कहकर सेठ अपनी आँखों की नमी को छुपाता हुआ किसी को फोन करने लगा|
कुछ ही देर में वहाँ एक टीन की दुकान खडी हो गई और दुकान में कोल्ड ड्रिंक की बोतलें करीने से लग गई |
“माई, आज से तुम मजदूरी नहीं करोगी यहाँ बैठकर लोगों को ठंडा पिलाओगी” |
“मगर साहब ये टीन तो चाँद में दाग़ के समान लग रही है“
“किन्तु वही दाग़ तो चाँद को बुरी नजर से बचाता है न”? साहब ने कहा |
“हे भगवान् ...कब से ये क्या सोचे जा रहे हैं ये कोई वक़्त है सोचने का”? लगभग खींचते हुए सेठानी बोली |
“आस पास के सब घर गिर चुके हैं कोहराम मचा हुआ है भूकंप ने सब कुछ लील लिया है सेठ जी,और तुम हो इस वक़्त भी ख्यालों में डूबे हो | भगवान ने हमे मौका दिया है जान बचाने का जमीन देखो अब भी हिल रही है भुज में सर्वनाश हो गया लगता है चलो बाहर भागते हैं“
"हमे कुछ नहीं होगा” कहते हुए सेठ जी सेठानी का हाथ पकड़कर बाहर आये और देखा धीरे-धीरे बुदबुदाती हुई जुबैदा दीवार को चूम रही थी दुकान में कोल्ड ड्रिंक की बोतलें छनछना रही थी जैसे आपस में कह रही हों
“जिसकी नींव में पाक़ रूह का पसीना मिला हो वो इमारत कैसे ढह सकती है”|
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी ,मेरी लघु कथा के सर्व प्रथम पाठक और प्रशंसक दोनों के लिए तहे दिल से आभार |
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