2122 2122 212
जिंदगी में जीत भी कुछ हार भी
और यारो प्यार भी तकरार भी
लोग दरिया से उतारें पार भी
छोड़ देते बीच कुछ मजधार भी
हर कदम पे ही मिले हमको सबक
राह में कुछ फूल भी कुछ ख़ार भी
हम भले फुटपाथ पर धीमे चले
पार करने को बढ़ी रफ़्तार भी
जो मिले पैसे उसी में सब्र था
बीस आये हाथ में या चार भी
हम सदा खेला किये बस गोटियाँ
खेल में खंजर मिले तलवार भी
जिन्दगी ने सब लिए हैं इम्तहाँ
इश्क़ में इनकार भी इकरार भी
जीस्त तो कुरआन गीता की तरह
पर कभी दर पे पड़ा अखबार भी
इस चमन में हर तरह के फूल हैं
ढूँढ लो खुद्दार भी गद्दार भी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश जी , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने , दिल से बधाइयाँ आपको ।
लोग दरिया से उतारें पार भी -- दरिया के पार या दरिया के पार , मुझे के सही लग रहा है , सोचियेगा ।
आ० डॉ० सूर्या बाली जी,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद दोनों के लिए दिल से बहुत बहुत आभार .
तहे दिल से आभार आ० मनन कुमार जी
आ० तेजवीर सिंह जी बहुत- बहुत शुक्रिया |
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी! बेहतरीन गज़ल!
जिन्दगी ने सब लिए हैं इम्तहाँ
इश्क़ में इनकार भी इकरार भी
आ० श्याम नारायण जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया
इस चमन में हर तरह के फूल हैं
ढूँढ लो खुद्दार भी गद्दार भी
शानदार रचना आदरणीया बहुत२ बधाई आप को | सादर |
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