मुक्त कर तम से जकड़ती मुट्ठियाँ
भोर की पहली किरण को भींच ले
व्योम से तुझको पटक कर
पस्त करके होंसलो को
चिन रही है गेह तुझमे
भावनाएँ हीन गुपचुप
मार सूखे का हथौड़ा
तोड़ कर तेरी तिजौरी
बाँध खुशियों की गठरिया
जा रहा है मेघ छुप छुप
भेद बादल की गगरिया
अपने हिस्से की ख़ुशी तू खींच ले
भान तुझको ही नहीं है
छटपटाहट की जमीं के
गर्भ में आकार लेती
तल्खियों की बेल शापित
जो सुखाती जा रही है
ख्वाहिशों की क्यारियों को
खुद तुझे करना पड़ेगा
हिम्मतों का बीज रोपित
भाग्य का पौधा उगाने
आज का सूरज नया तू सींच ले
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
प्रिय प्रतिभा जी ,आपको ये नवगीत पसंद आया मेरा प्रयास सफल हुआ दिल से आभारी हूँ .
रचना के तेवर शब्द चयन और प्रवाह मुग्ध कर रहे हैं तहे दिल से बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी ,
आद० सौरभ जी,इस नवगीत पर आपकी समीक्षा पाकर उत्साहित हूँ आपका दिल से बहुत बहुत आभार |लिखते वक़्त शापित और रोपित को लेकर मैं भी असमंजस में थी किन्तु कोई भी उपयुक्त शब्द नहीं मिल पाया कोई और शब्द ले रही थी तो भाव के साथ छेड़ हो रही थी सो ऐसे ही रहने दिया |आपको पता है नवगीत मैंने बहुत कम लिखे हैं ये समझो नवगीत के मामले में प्राइमरी की छात्रा हूँ धीरे धीरे साधने का प्रयास करुँगी सादर .
आद० गिरिराज जी,प्रस्तुति के मर्म से उपजे हुए अपने विचार रखकर अनुमोदित करने के लिए दिल की गहराई से बहुत- बहुत शुक्रिया |
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
नवगीत के तथ्य से जो कुछ प्राप्त हो रहा है वह वस्तुतः मुग्धकारी है. आपने जिस सकारात्मकता के साथ गीति-तत्त्व को साधा है और प्रस्तुत किया है वह प्रभावी है.
यह अवश्य है कि कथ्य की शैली को लेकर थोड़ी चर्चा हो सकती है. नवगीत विधा शब्द-चयन को लेकर तत्सम की आग्रही नहीं होती. दूसरे, ’शापित’ और ’रोपित’ की तुकान्तता एक ग़ज़लकार से क्षम्य है क्या ? .. ;-))
हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीया राजेश जी , नित बिगड़ते जा रहे पर्यावरण के कारण उपजी विभीषिका के प्रति न केवल सचेत कर रही है आपकी रचना वरन हिम्मत भी बंधा रही है। बहुत बढिया , बहुत बधाई ।
आ० डॉ० आशुतोष जी ,नवगीत पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिया तोषकारी है मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार आपका .
आपको ये नवगीत पसंद आया आ० श्याम नारायण जी आपका बहुत- बहुत आभार .
आ० तेजवीर सिंह जी ,आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका .
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