१२२ १२२ १२२ १२२ नया दर्द कोई जगा भी नहीं है |
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न करना अभी बंद अपनी ये पलकें |
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मुसलसल धड़कता कहीं जिस्म में दिल
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Comment
इस ग़ज़ल को पढ़ना अच्छा लगा आदरणीया राजेश कुमारीजी. शुभ-शुभ
आद० गिरिराज जी,आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आदरणीया राजे श जी , फिल बदीह के लिहाज़ से बहुत अच्छी गज़ल कही आपने । आप चाहें तो कहन को और माँज सकती हैं बाद में । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आद० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ
आद० सुशील सरना जी ,आपका तहे दिल से बहुत बहुत आभार |
आ० हर्ष महाजन जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया इस होंस्लाफाई के लिए बहुत ममनून हूँ |
प्रिय राहिला जी,आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आ० श्यामनारायण वर्मा जी ,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया|
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