२१२२ २१२२ २१२
ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए
जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए
घोंसला भी साथ उनके उड़ गया
रह गया वो हाथ में तिनके लिए
फूल को तो ले गई पछुआ हवा
रह गई बस डाल मालिन के लिए
फूल चुनकर बांटता उनको रहा
खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए
क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए
अपने आंगन में खिले अपने नहीं
फूल जंगल में खिले किन के लिए
पत्थरों के शह्र में पत्थर सभी
हैं कहाँ जज्बात मोहसिन के लिए
रू परिंदा एक दिन उड़ जायेगी
बस कफ़स में कैद पल छिन के लिए
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत- बहुत शुक्रिया आ० सौरभ जी .
आ० सुशील सरना जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आपका तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया |
चलिये न तब अभी ही सही .. :-))
स्वस्थ हो गयी आदरणीया, ये जान कर प्रसन्नता हुई..
सादर
ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए
जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए
घोंसला भी साथ उनके उड़ गया
रह गया वो हाथ में तिनके लिए
दिलकश अंदाज़ में सृजित अशआर दिल पर असर करते हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी। इस भावनापूर्ण ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
आ० गिरिराज जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया आपके मशविरे का स्वागत है
आदरनीया राजेश ज्जी , बेहतरीन गज़ल कही आपने , गिरह भी अच्छी लगाई है , दिली मुबारक बाद आपको ।
क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए -- गलत कुछ भी नही पर , प्रश्न अगर ज़िंदगी से हो तो और अच्छा -- ऐसे कह के देखिये
क्या मिला तुझको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए --- परिवर्तन ज़रूरी नही है बस एक सलाह है ।
आ० रवि शुक्ल जी ,ग़ज़ल पर आपकी दाद और मेरे स्वास्थ्य के प्रति शुभकामनाओं के लिए तहे दिल से आभार |
आदरणीया राजेश जी आपकी तरही गजल पढी अच्छी लगी बहुत बहुत बधाई आपको आप अब स्वस्थ है ये जान कर संतोष हुआ पुन: सक्रिय होना शुभ लक्षण है । सादर
प्रिय प्रतिभा जी , आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आयोजन में उपस्थित न हो पाने की टीस तो रहती ही है किन्तु अब भी संतुष्टि मिल रही है ग़ज़ल तक आने और अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया से नवाज़ने पर आपका तहे दिल से आभार |
मुशायरे में शरीक न हो पाने की कमी आपने पूरी कर ही दी इस लाजवाब प्रस्तुति से आदरणीया राजेश कुमारी जी , ढेरों दाद लीजिये इस ग़ज़ल पर आप
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