For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पल में करेले नीम से पल में लगें अंगूर हैं (हास्य ग़ज़ल 'राज')

2212  2212  2212  2212 

 

नखरे ततैय्ये से अजी इनको मिले भरपूर हैं

अपनी करें मन की खुदी खुद में बड़े मगरूर हैं

 

मतलब पड़े तारीफ़ करते हैं मगर सच बात ये

जोरू इन्हें मुर्गी, पड़ोसन सारी लगती हूर हैं

 

अंदाज इनके देख के गिरगिट भरें पानी यहाँ

पल में करेले नीम से पल में लगें अंगूर हैं

 

वादा करें ये तोड़ के देंगे फ़लक से चाँद को   

माँगें  अगर साड़ी कहें जानम  दुकानें दूर हैं  

 

गाते  चुराकर गीत ये चोरी की पढ़ते हैं ग़ज़ल

खुद को समझते हैं बड़े ग़ालिब या तुलसी सूर हैं

 

इनसे सुनी उनको कही उनसे सुनी इनको कही
गलती नहीं इनकी अपच के रोग से मजबूर हैं

 

ये शेर बन जाते जरा सा घूँट पीते ही सुनो

पर हैं फ़कत ये मेमने बेशक नशे में चूर हैं

 

ये थरथरा जाते अगर पाकेट पे कब्ज़ा करें   

जो ताव मूछों पर दिए दिनरात बनते शूर हैं

 

धमकी मिले जो मायके की हाथ अपने जोड़ते  

शिकवे शिकायत और सब कसमें कहें मंजूर हैं

 

पति रात दिन लड़ते झगड़ते पत्नियों से खां-म-खां

पर पत्नियाँ फिर भी कहें उनकी नजर के नूर हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित 

----------------------राजेश कुमारी ‘राज’

Views: 776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2016 at 1:32pm

आ० नरेन्द्र सिंह जी ,आपका अतिशय आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2016 at 1:32pm

आदरणीय रवि भैया ,आपने सच कहा अभी तक आपके जीजा श्री ने नहीं देखी संभाल कर वक़्त पर दिखाऊँगी ...हाहाहा ..

पतियों को सताने का मौका बस कभी कभी मिलता है और मेरी महिला मित्रों की भी सहमती है तो दुगुना मजा बढ़ गया | आपने सच कहा खाने में नमक ही नहीं कभी कभी मिर्च भी होनी चाहिए हास्य का समावेश भी जरूरी है | आपका तहे दिल से बहुत बहुत आभार |

Comment by Ravi Shukla on June 8, 2016 at 12:28pm

आदरणीया राजेश दीदी  

/// पतियों की खबर लेने का मन बना लिया सो लिख डाली /// क्‍या आदरणीय जीजाश्री को ये बात मालूम है 

और ये तो गलत बात है आपकी गजल की इसी बात की तारीफ अन्‍य आदरणीया महिला सदस्‍य ( राहिला जी, प्रतिभा जी ) भी कर रही है  क्‍या ये कोई पूर्व निर्धारित योजना तो नहीं है ... हा हा हा     

खैैर हास्‍य की गजल पर हास्‍य के बाद पूरी संजीदगी से गजल की तारीफ में दाद कुबूल करें जीवन में हास्‍य का समावेश बहुत जरूरी है  सादर । 

Comment by narendrasinh chauhan on June 8, 2016 at 11:45am

खूब सुन्दर रचना 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2016 at 12:33pm

प्रिय प्रतिभा जी ,आपने इस हास्य ग़ज़ल का मजा लिया मेरा लिखना सार्थक हुआ हालाँकि मैं हास्य बहुत कम लिखती हूँ बस इस बार पतियों की खबर लेने का मन बना सो लिख डाली |आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by pratibha pande on June 6, 2016 at 12:01pm

भाई वाह ,अच्छी खबर ली है आपने  इन पतियों की , ढेरों बधाई प्रेषित है आपको इस ताज़ी हंसी से भरी ग़ज़ल पर आदरणीया राजेश कुमारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2016 at 4:13pm

aनुज जी ,आपको ये मजाहिया ग़ज़ल पसंद आई इसका मकसद पूरा हुआ आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by Anuj on June 5, 2016 at 4:07pm

वादा करें ये तोड़ के देंगे फ़लक से चाँद को

माँगें अगर साड़ी कहें जानम दुकानें दूर हैं

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आज की दुनिया में हंसी को बचाए रखना बहुत बड़ा काम हैं.आप ने इस ग़ज़ल में ये काम बखूबी अंजाम दिया है.बधाईयाँ!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2016 at 12:10pm

प्रिय राहिला जी ,ग़ज़ल के हास्यरस का सर्वप्रथम रसास्वादन करने के लिए हार्दिक आभार पत्नियों के लिए कितना कुछ लिखा जाता है तो मैंने भी ये पति टीजिंग ग़ज़ल लिखी है पत्नियों को निःसंदेह मजा आएगा किन्तु देखना ये है की पति लोग इसे कैसे पचाते हैं :-)))))

Comment by Rahila on June 5, 2016 at 11:46am
पति रात दिन लड़ते झगड़ते पत्नियों से खां-म-खां
पर पत्नियाँ फिर भी कहें उनकी नजर के नूर हैं।वाह..वाह. ..बड़ी शानदार ग़ज़ल, हर शेर मजेदार ।बहुत बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये । सादर नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service