2212 2212 2212 2212
नखरे ततैय्ये से अजी इनको मिले भरपूर हैं
अपनी करें मन की खुदी खुद में बड़े मगरूर हैं
मतलब पड़े तारीफ़ करते हैं मगर सच बात ये
जोरू इन्हें मुर्गी, पड़ोसन सारी लगती हूर हैं
अंदाज इनके देख के गिरगिट भरें पानी यहाँ
पल में करेले नीम से पल में लगें अंगूर हैं
वादा करें ये तोड़ के देंगे फ़लक से चाँद को
माँगें अगर साड़ी कहें जानम दुकानें दूर हैं
गाते चुराकर गीत ये चोरी की पढ़ते हैं ग़ज़ल
खुद को समझते हैं बड़े ग़ालिब या तुलसी सूर हैं
इनसे सुनी उनको कही उनसे सुनी इनको कही
गलती नहीं इनकी अपच के रोग से मजबूर हैं
ये शेर बन जाते जरा सा घूँट पीते ही सुनो
पर हैं फ़कत ये मेमने बेशक नशे में चूर हैं
ये थरथरा जाते अगर पाकेट पे कब्ज़ा करें
जो ताव मूछों पर दिए दिनरात बनते शूर हैं
धमकी मिले जो मायके की हाथ अपने जोड़ते
शिकवे शिकायत और सब कसमें कहें मंजूर हैं
पति रात दिन लड़ते झगड़ते पत्नियों से खां-म-खां
पर पत्नियाँ फिर भी कहें उनकी नजर के नूर हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
----------------------राजेश कुमारी ‘राज’
Comment
आ० नरेन्द्र सिंह जी ,आपका अतिशय आभार |
आदरणीय रवि भैया ,आपने सच कहा अभी तक आपके जीजा श्री ने नहीं देखी संभाल कर वक़्त पर दिखाऊँगी ...हाहाहा ..
पतियों को सताने का मौका बस कभी कभी मिलता है और मेरी महिला मित्रों की भी सहमती है तो दुगुना मजा बढ़ गया | आपने सच कहा खाने में नमक ही नहीं कभी कभी मिर्च भी होनी चाहिए हास्य का समावेश भी जरूरी है | आपका तहे दिल से बहुत बहुत आभार |
आदरणीया राजेश दीदी
/// पतियों की खबर लेने का मन बना लिया सो लिख डाली /// क्या आदरणीय जीजाश्री को ये बात मालूम है
और ये तो गलत बात है आपकी गजल की इसी बात की तारीफ अन्य आदरणीया महिला सदस्य ( राहिला जी, प्रतिभा जी ) भी कर रही है क्या ये कोई पूर्व निर्धारित योजना तो नहीं है ... हा हा हा
खैैर हास्य की गजल पर हास्य के बाद पूरी संजीदगी से गजल की तारीफ में दाद कुबूल करें जीवन में हास्य का समावेश बहुत जरूरी है सादर ।
खूब सुन्दर रचना
प्रिय प्रतिभा जी ,आपने इस हास्य ग़ज़ल का मजा लिया मेरा लिखना सार्थक हुआ हालाँकि मैं हास्य बहुत कम लिखती हूँ बस इस बार पतियों की खबर लेने का मन बना सो लिख डाली |आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
भाई वाह ,अच्छी खबर ली है आपने इन पतियों की , ढेरों बधाई प्रेषित है आपको इस ताज़ी हंसी से भरी ग़ज़ल पर आदरणीया राजेश कुमारी जी
aनुज जी ,आपको ये मजाहिया ग़ज़ल पसंद आई इसका मकसद पूरा हुआ आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
वादा करें ये तोड़ के देंगे फ़लक से चाँद को
माँगें अगर साड़ी कहें जानम दुकानें दूर हैं
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आज की दुनिया में हंसी को बचाए रखना बहुत बड़ा काम हैं.आप ने इस ग़ज़ल में ये काम बखूबी अंजाम दिया है.बधाईयाँ!
प्रिय राहिला जी ,ग़ज़ल के हास्यरस का सर्वप्रथम रसास्वादन करने के लिए हार्दिक आभार पत्नियों के लिए कितना कुछ लिखा जाता है तो मैंने भी ये पति टीजिंग ग़ज़ल लिखी है पत्नियों को निःसंदेह मजा आएगा किन्तु देखना ये है की पति लोग इसे कैसे पचाते हैं :-)))))
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