कोई कल्पना-स्वप्न ही होगा शायद
हुआ जो हुआ, वह इरादतन नहीं था
नियति की काल-कोठरी को बूझा है कौन
‘ कहाँ- कहाँ था मेरा दोष ’ का गंभीर भान
दोष कहीं कोई तुम्हारा नहीं था
जीवन के आरोह-अवरोह से डरी-डरी
अज्ञात भय से भीगी तुम कह देती थी ...
अनहोनी का होना कोई नया नहीं है
और मैं, गई रात की हिमीभूत टीस छिपाये
हलके-से दबाकर हाथ तुम्हारा
मुस्करा देता था
उस गंभीर पल को छल देता था
अनगिन अग्नि-परीक्षाओं से गुज़रे
अनुभव-वृद्धा रिश्ते के अनबूझे क्षण
हृदय में भय आशंकाहत
समय की अदृश्य लहरें उच्छृंखल
भयंकर जलावर्त
प्रतिदिन नव-आविष्कृत गहरे अरूप
अविश्वास में उलझे भावों का भार नवीन
एक और कल तक रूक न सकती थीं हमारी
आसमान से मिली हुई वह भाव-विभोर बातें
अब अनुदित अपरीसीम दूरियाँ
असाधारण सतही सामंजस्य अनेक
शब्दाभिव्यक्ति की खोज में
टूटी-बिखरी उन बातों का सारा
पड़ा है बंजर प्रसार
आज हाथ तुम्हारा जब पास नहीं है
मैं बैठा दुहरा देता हूँ तुम्हारे पूर्वाभास को
‘ अनहोनी का होना कोई नया नहीं है ’...
गहराई के कमरे में गुज़रे पलों की यादें पसार
मन ही मन नियति के नियमों को टटोलती
बादलों की गरजन में दिल की धड़कन को गिनती
प्रिय, मेरी आहट को न सुन, तुम उदास न रहा करो
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-विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//बिछोह के पलों मे मिलन की गम्भीर गड़ियों की यादें ही सहारा होतीं हैं । उन्ही कुछ गम्भीर की यादों मिलन से सजी आपकी इस रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ//
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
इस रचना को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक जी।
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , बिछोह के पलों मे मिलन की गम्भीर गड़ियों की यादें ही सहारा होतीं हैं । उन्ही कुछ गम्भीर की यादों मिलन से सजी आपकी इस रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
जीवन के आरोह-अवरोह से डरी-डरी
अज्ञात भय से भीगी तुम कह देती थी ...
अनहोनी का होना कोई नया नहीं है
और मैं, गई रात की हिमीभूत टीस छिपाये
हलके-से दबाकर हाथ तुम्हारा
मुस्करा देता था
उस गंभीर पल को छल देता था............वाह ! सहज कही कुछ बातों में भी अनुभव की गहराई होती है. जो अनुभव होने पर ही समझ आती हैं. खूब उत्तम भाव लिए सुंदर प्रस्तुति. सादर नमन.
//अनुपम रचना//
सराहाना के लिए आपका दिल से आभार, आदरणीय सतविंद्र जी
//सघनता से भावों का संयोजन किया है आपने ...हृदय की गहराईयों से बधाई प्रेषित है आपको । .... //
इतना मान देने के लिए आपका आभार, आदरणीया कांता जी।
//सुन्दर , गम्भीर, खुद को एक स्वप्न में ले जाती सार गर्भित रचना//
इन सुन्दर शब्दों के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय विजय शंकर जी
//अंतर्मन की गहनता को बहुत ही सुंदर ढंग से अापने कागज़ प र उकेरा है//
इस सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।
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