1- नाम वरों में छुप रहे
नामवरों में छुप रहे , सारे गलती बाज
सच के आगे किस तरह , मची हुई है खाज
मची हुई है खाज , खून उभरा है तन में
लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में
सत्य गिनेगा नाम , कभी तो जानवरों में
आज छिपालो झूठ, किसी का नामवरों में
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2- गिरगिट मानव देख
धोती में अपनी कभी , नही देखते दाग
और लगाते हैं सदा , अन्य वसन में आग
अन्य वसन में आग , लगाते हैं वो सारे
जिनको डर है सत्य, कहीं ना उनको मारे
गिरगिट मानव देख , सदा सच्चाई रोती
चलो दिखायें दाग , निकालें उनकी धोती
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गिरिराज भंडारी
Comment
आदरनीय सौरभ भाई , आपके विस्तार से समझाने पर ग़लती का नक्शा साफ साफ खिंच गया , इतनी बारीकी समजह्ने और समझाने के लिये आपका हृदय से आभार । आपका सुझाया हल भी बहुत सही है , मै अभी सुधार कर रहा हूँ । नामवर भी ठीक कर लेता हूँ । आपका पुनः आभार ।
आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
नामवर को ठीक कर लूँगा आपका पुनः आभार ।
बहुत खूब ! हार्दिक बधाइयाँ !
एक पंक्ति .. लेकिन कोई लाज , नही दिखती है मन में
गेयता कमज़ोर है. सुधीजनों को इसका भान अवश्य हुआ होगा किन्तु, अगाह, देख रहा हूँ किसीने किया नहीं है. इसका मुख्य कारण पंक्ति और क्रमशः चरणों का शुद्ध मात्रिक होना प्रतीत हो रहा है. लेकिन शब्द संयोजन की दृष्टि से देखा जाय तो ’है’ पर मात्रा-भार कम कर उच्चारण करना पड़ रहा है. इसका कारण ’दिखती’ के ’ती’ अधिक स्वर-भार का होना है. चूँकि ’दिखती’ एक शब्द होने से ’दिख+ती’ करते हुए ’दिख’ को अलग कर पढ़ना संभव नहीं है ताकि ’ती’ पर का स्वर-भार अधिक न हो पाये. अतः ’नहीं’ के बाद कोई ऐसा द्विकल रख दिया जाय ताकि उपर्युक्त समस्या में दिखते ’दिख’ का स्थानापन्न हो. इसकेलिए ’नहीं’ के बाद ’है’ रखने से काम चल जायेगा.
इस स्थिति में पंक्ति होगी - लेकिन कोई लाज , नही है दिखती मन में
मात्रिकता और शब्द-संयोजन के हिसाब से अब वाचन-उच्चारण में कोई दोष नहीं होगा.
लेकिन पंक्ति अर्थ के हिसाब से थोड़ी अटपटी हो गयी. इसकेलिए इस पंक्ति को फिर से लिखना और साधना होगा.
एक विकल्प, लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में .. हो सकता है. वैसे, इस विन्दु पर आप मुझसे बेहतर सोच सकते हैं, आदरणीय.
और, ’नामवर’ एक शब्द है. आदरणीय. इसे ’नाम वर’ लिखना अशुद्ध है
सादर
आआ० अनुज , मैं जो कुण्डलिया देख रहा हूँ , उनमे त्रुटि नहीं है . शायद मैं सुधार के बाद देख रहा हूँ . बहुत बढ़िया रचना है. नाम और वरों को अलग अलग दिखाना सही नहीं है नामवर अपने आप में एक शब्द है , सादर .
आदरनीय अशोक भाई , सराहना के लिये आपका आभार , खून उभरा है तन में -- के लिये कोई सलाह हो तो बताइयेगा । आपका पुनःआभार ।
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर नमन, सुंदर कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी 'खून उभरा है तन में' कहन कमजोर लगी. सादर.
आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । आपकी सलाह उचित है , अभी सुधार रहा हूँ ।
आदरणीया राजे श जी , सराहना के लिये आपका आभार । आपकी सलाह उचित है , सुधार कर लूँगा ।
आदरणीय राम बली भाई , आप का कहना सही है , सुधरता हूँ अभी , आभार आपका ।
आदरणीय भाईसाब ..सुंदर कुण्डलियाँ है पर उनकी धोती का प्रयोग शायद परिवर्तित होना चाहिए ..इन दोनों ही रचनाओं पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ
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