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आकलन सरकार का तो खूब करते आप हैं
पर न सोचा आपने कितने किये खुद पाप हैं
हुक्मरानों को किया पैदा भी खुद है आपने
इस तरह रिश्ते से उनके आप माई बाप हैं
इक मसीहा तो सफाई के लिए चिल्ला रहा
रोज क्या ये भी कहे बीमारियाँ अभिशाप हैं
गंगा तू पावन करेगी पापी को वरदान ये
खुद सड़ेगी कोढियों सी कब मिले ये शाप हैं
बाँध सडकें पुल हुए कमजोर महलों वास्ते
लूट के ही माल से करते लुटेरे जाप हैं
गंदगी में जीने के हम इतने आदी हो गए
क्या बुरा गर लोग कहते हमको सूकर छाप हैं
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय सर ..रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
आदरणीय शेख जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे उत्साह मिला है बस यूं ही स्नेह बनाए रखें सादर धन्यवाद के साथ
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