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लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है

१२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२

नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है

लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है

कली कली से ये बात करती अरे सखी क्या ये ज़िन्दगानी

नहीं जो भंवरे नहीं जो तितली निखरने से फायदा ही क्या है

चलो कदम से कदम मिलाकर  हसीं अगर जिन्दगी बनानी

ये बात हारों के मोती समझे बिखरने से फायदा ही क्या है

कलम तुम्हारी है खूब लिखती दुआ मेरी भी है खूब लिख्खे

ख्याल दिल से निकाल दो पर कि पढने से फायदा ही क्या है

ये इल्म गहरा समन्दरों सा मगर हुआ गर गुमान तुमको

गुमान कर तुम कहोगे खुद कल ये करने से फायदा ही क्या है

जुदा है मंजिल जुदा हैं राहें सभी चले दिल में हौसला ले

सही हूँ बस मैं , गलत जमाना समझने से फायदा ही क्या है

E31  मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 5, 2016 at 5:39pm
ये ग़ज़ल-गंगा मन को शीतलता प्रदान कर गयी, ये शेर रुपी जल अंजुरी में ले लिया है बस-
बहुत बहुत बधाई।
ये इल्म गहरा समन्दरों सा मगर हुआ गर गुमान तुमको
गुमान कर तुम कहोगे खुद कल ये करने से फायदा ही क्या है
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2016 at 12:51pm

आदरणीया राहिला जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल शुक्रगुजार हूँ ये शेर आपको पसंद आया तो मेरा लिखना भी सार्थक हुआ सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Rahila on July 5, 2016 at 12:30pm
"नहीं है कोई अगर चितेरा संवरने से फायदा ही क्या है
लिखें सभी पर पढ़े न कोई तो लिखने से फायदा ही क्या है"ये शेर तो कमाल का हुआ। पूरी ग़ज़ल ही उम्दा बन पड़ी।खूब बधाई।सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2016 at 12:09pm

भाई जयनित जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मेरा लिख सार्थक हुआ ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 4:44pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..आपके मार्गदर्शन और रचना धर्मिता को प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रियाओं से मुझे लाभ मिलता है ..रचना धर्मिता की नव ऊर्जा मिलती है ..प्रयास तो मैं सतत कर रहा हूँ अभी बहर को ही समझ रहा हूँ और साथ साथ कहन पर भी चिंतन करने का प्रयास कर रहा हूँ ..अच्छी रचना को पढ़ते ही मुह से अनायास ही निकल पड़ता है क्या कमाल की सोच है ..शब्द सभी के वही हैं लेकिंग शब्दों की स्थति भाव प्रवणता को और प्रखर कर देती है ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया और उत्साह वर्धन के लिए शुक्रगुजार हूँ सादर प्रणाम के साथ 


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:28pm

आदरणीय आशुतोष भाई , कठिन बहर को आपने अच्छे से निभाया है , ग़ज़ल अच्छी हुई है , कहन मे ज़रूर काम और किया जासकता था, ये बात वैसे मुझे मिलाकर सभी के लिये सही है ।बहर के बाद कहन पर ही काम करना होता है । चाहे मैं हूँ या आप । आपको इस गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 3:06pm

आदरणीय रवि सर ..आपकी प्रतिक्रिया से मेरा हौसला बढ़ा है ..आप सब के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से नूतन लिखने का साहस और ऊर्जा मिलती है ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे इस कामना के साथ सादर प्रणाम केसाथ 

Comment by Ravi Shukla on July 4, 2016 at 1:32pm

आदरणीय आशुतोष जी बढि़या गजल कही है।  इसके लिये बधाई स्‍वीकार करें जयनित जी की बात से इतना तो सहमत है कि बड़ी बहर की गजलों में कुछ शब्‍द पचाने की विवशता रहती है किन्‍तु इस बात से सहमत नहीं है कि छोटी बहर में गजल कहना आसान है छोटी बरहर के सीमित दायरे में श्‍ाब्‍दों को उनके पूरे अर्थों के साथ साध लेना भी एक मुश्किल काम है । सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 3, 2016 at 9:56pm
आदरणीय आशुतोष जी,
छोटी बहरों में प्रभावशाली ग़ज़ल कहना अपेक्षाकृत आसान होता है, जबकि बड़ी बहर की ग़ज़लों में कुछ निरर्थक शब्द भी पचाने की विवशता होती है।

इस सन्दर्भ में आपकी ये ग़ज़ल काफी हद तक सफल हुई है।
इसके लिए आप हार्दिक बधाई के पात्र हैं।
सादर!

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