१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
नहीं आती मुझे अब नींद जीभर के पिला साकी
निशा गहरी डगर सूनी कहाँ जाएँ बता साकी
मुहब्बत मेरी पथराई जमाने भर की ठोकर खा
अहिल्या की तरह मेरी कभी जड़ता मिटा साकी
मैं भंवरों सा भटकता ही रहा ताउम्र बागों में
कमल से अपने इस दिल में तू ले मुझको छुपा साकी
ये मंजिल आखिरी मेरी ये पथ भी आखिरी मेरा
मेरी नजरों से तू नजरें घड़ी भर तो मिला साकी
जो सीना चीर पाहन का निकलता मैं वो दरिया हूँ
मुझे आगोश में ले अपने अब सागर बना साकी
ये रिश्ते मय से थे कडवे मुझे जो लगते थे अपने
तेरी सुहबत में आकर ये भरम टूटा मेरा साकी
न मय की है न सागर की न मैखानो की ख्वाहिश है
तेरी बांहों में दम निकले यही बस इल्तिजा साकी
G6 मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. डॉ साहब,
अच्छा प्रयास हुआ है ग़ज़ल का...
थोडा फाइन ट्यून और करते तो बेहतर होता ..जैसे ठोकर खा.... आदेशात्मक लग रहा है ...
ज़माने भर की ठोकर खा के पथराया है दिल मेरा ..
.
जो सीना चीर पाहन का निकलता मैं वो दरिया हूँ...
मैं दरिया हूँ जो सीना चीर के पत्थर का निकला हूँ ...
इसी तरह अन्य मिसरे फिर संयोजित करने का प्रयत्न करें ..
सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे इस कामना और रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर
आदरणीय रवि सर ..क्षमा प्रार्थी हूँ .इतने बिलम्ब से जवाब देने के लिए .. आप जैसे जानकारों के मार्गदर्शन से ही सतत सीखने का मौका मिलता है आपका सुझाव शानदार है ..मुझे दूसरा बिकल्प नहीं सूझ रहा है ..आपकी अनुमति हो तो ये पंक्तियाँ मैं शामिल कर लूं / क्षमा सहित निवेदन ....ऐसा आप क्यूँ लिख रहे हैं ..मेरी कोई भी गलती हो आप मुझे परामर्श दें ..ताकी मैं पहले से बेहतर लिख सकूं ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया , आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद ...सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय पंकज जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें /
आदरणीय शुशील जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे उत्साह मिला है स्नेह यूं ही बनाए रखे सादर
भाई मनोज जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करिये सादर धन्यवाद के साथ
आदरनीय आशुतोष भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिल से बधाइया आपको ।
आदरणीय आशुतोष जी इस खूबसूरत गजल के लिए बहुत मुबारकबाद कुबूलें. सादर.
क्षमा सहित निवेदन है कि दूसरे शेर के सानी मिसरे मे चेतनता शब्द बह्र्र को पूरा करने के लिये जड़ता के समान चेतनता का प्रयोग किया गया लगा हमें । जबकि इस के लिये और भी बेहतर शब्द चयन कर सकते है आप जैसे त्वरित मिसरे केे तौर पर हम कह सकते है कि
अहिल्या की तरह मेरी कभी जड़ता मिटा साकी जरूरी नहीं कि ये ही हो । कथ्य आपका है आप और बेहतर समझ सकते है । सादर
न मय की है न सागर की न मैखानो की ख्वाहिश है
तेरी बांहों में दम निकले यही बस इल्तिजा साकी
वाह बहुत खूबसूरत शेर हुअा है अादरणीय , हार्दिक बधाई इस नशीली ग़ज़ल के लिए।
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