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हाल-ए-दिल पूछने चले आये (ग़ज़ल)

2122 1212 22

हाल-ए-दिल पूछने चले आये।
जाइए, जाइए.....बड़े आये।

उनके नज़दीक हम गये जितने,
दरमियाँ उतने फ़ासले आये।

आपके शह्र, आपके दर पर,
आपका नाम पूछते....आये।

राह-ए-मंज़िल में करने को गुमराह,
जाने कितने ही रास्ते आये।

हुए रावण के अनगिनत मुखड़े,
राम-राज अब तो कोई ले आये।

ज़ीस्त का मस्अला नहीं सुलझा,
जाने कितने चले गए, आये।

ढूँढे मिलता नहीं हमारा दिल,
हाथ किसके न जाने दे आये।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 29, 2016 at 10:33am

आ० जयनित भाई जी,  इसमे कोई  शक नही इस गज़ल पर प्रयास बेहतरीन हुई है.  किंतु जिस शेर को आ० महेंद्र भाई ने सबसे अच्छा कहा वही रद्दी है....इसका काफिया दोष पूर्ण है...पुन: देख लें. ......सादर

Comment by Mahendra Kumar on June 28, 2016 at 9:12pm
आदरणीय जयनीत जी, बहुत ही ग़ज़ब का मतला लिखा है। मक्ते के पहले का शेर बहुत बढ़िया है। ग़ज़ल बहुत अच्छी बनी है। दिली दाद पेश है!

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