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कहाँ तक ज़िन्दगी से भागियेगा (ग़ज़ल)

1222 1222 122

हर इक चेहरे पे था चेहरों का पर्दा
तभी तो खा गया आईना धोखा

तुम्हारी मौत मेरी ज़िन्दगी है,
अँधेरा रौशनी से कह रहा था

नहीं छोड़ेगी पीछा मरते दम तक,
कहाँ तक ज़िन्दगी से भागियेगा।

निहत्था आफ़ताब आया फ़लक पर,
अभी हमला भी होगा बादलों का।

वफ़ा की बात फिर करने लगा मैं,
रिएक्शन ये दवा का हो गया क्या?

"जय" अब तो छोड़ करना सौदा-ए-दिल
हुआ कंगाल तू सह-सह के घाटा

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2016 at 6:30pm

अच्छी  ग़ज़ल है ज्यनीत जी बहुत बहुत बधाई |

मतले में आईना में ना की मात्रा  नहीं गिरा सकते मेरे ख़याल से इस मिसरे को खुद गाकर पढ़े क्या आइन धोखा नहीं आ रहा 

मकते में उला की बह्र भी जांच लें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2016 at 6:02pm

आदरणीय जयनित भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बदाइयाँ आपको । मतले का उला शायद बेबह्र हो , इजाफत की मात्रा 1 लीजाती है , ऐसा मेरा खयाल है , पता कर लीजियेगा ।

Comment by Sushil Sarna on July 1, 2016 at 3:16pm

नहीं छोड़ेगी पीछा मरते दम तक,
कहाँ तक ज़िन्दगी से भागियेगा।

निहत्था आफ़ताब आया फ़लक पर,
अभी हमला भी होगा बादलों का।

बहुत खूबसूरत अशअार हैं अादरणीय .... हार्दिक बधाई इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए कबूल फरमाएं।

कृपया ध्यान दे...

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