वह महंगी शॉल ओढ़े, गर्व से चेहरा उठाये, आरामदायक व्हीलचेयर पर बैठा हुआ था, जिसे एक नर्स धकेल रही थी| हस्पताल में एक डॉक्टर के कमरे के बाहर उसने नर्स को रुकने का इशारा किया| नर्स ने कुर्सी रोकी ही थी कि डॉक्टर के कमरे के दरवाज़े पर टंगा सफेद पर्दा हटा कर एक आदमी बाहर निकला| उसने ध्यान से देखा वह उसका पुराना मित्र था, जो वर्षों बाद दिखाई दिया| मित्र ने भी उसे एकदम पहचान लिया, लेकिन उसे व्हीलचेयर पर देखकर मित्र चौंका और उससे पूछा,
"अरे, तुम! कैसे हो? यह क्या हो गया?"
उसने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ ख़ास नहीं, इस उम्र में मैं क्या पैदल चल कर आऊंगा? बहुत धन कमाया है, तो आराम से क्यों न रहा जाये| इसलिए इसे भी रखा है|" मित्र ने बैठे-बैठे ही अपने एक हाथ से नर्स की तरफ इशारा किया|
मित्र के चेहरे पर संतोष झलक आया, और सहमति में सिर हिलाया |
और मित्र के साधारण वस्त्रों को देखते हुए उसने कहा, "जानते हो, मैंने अपने सारे दोस्तों और दुश्मनों को पीछे छोड़ दिया... इतना कमाया है| खुद से आगे किसी को बढ़ने नहीं दिया, सब के सब पीछे हैं|" मित्र यह सुनकर मुस्कुराने लगा|
“अच्छा! यह बताओ, तुमने कितना कमाया है?” पूछते हुए उसके होंठों पर व्यंग्य भरी मुस्कराहट आ गयी|
मित्र ने उसकी तरफ गौर से देखा और गंभीर स्वर में उत्तर दिया, "इतना कमाया है कि जब मैं मेरे पीछे देखूं तो मुस्कुरा सकूं और आगे देखूं तो भी..."
मित्र समझ गया था कि दोनों का चिकित्सक तो एक ही था, लेकिन बीमारी अलग-अलग थी|
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बधाई आदरणीय चंद्रेश भैया | सुंदर लघुकथा हुई है |
रचना को पसंद करने और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीय राजेंद्र गौड़ जी भाई जी |
बधाई चंद्रेश जी!बेहतरीन प्रस्तुति !
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