छाये नभपर घन मगर, सहमी है बरसात |
देख धरा का नग्न तन, उसे लगा आघात ||
उसे लगा आघात, वृक्ष जब कम-कम पाए,
विहगों के वह झूंड, नीड जब नजर न आए,
अब क्या कहे ‘अशोक’, मनुज फिरभी इतराए,
झूठी लेकर आस, देख घन नभ पर छाए ||
कहीं उडी है धूल तो, कहीं उठा तूफ़ान |
देख रहा है या कहीं, सोया है भगवान ||
सोया है भगवान, अगर तो मानव जागे,
हुई कहाँ है भूल , जोड़कर देखे तागे,
जीवन की यह राह, गलत तो नहीं मुड़ी है
देखे क्यों तूफ़ान, धूल क्यों कहीं उडी है ||
मौलिक/अप्रकाशित.
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