For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोस्ती और दग़ाबाजी (लघु कथा। ) जानकी बिष्ट वाही

सुबह से दोपहर होने को आई।बाहर चिलचिलाती धूप और अंदर घुटन। जगदीश ये समझ नहीं पा रहा कि मन की बैचेनी है या कुछ और।
चपरासी के हाथ वह अपने आने की ख़बर अंदर तक पहुंचा चुका है। रतनुवा (रतन) बचपन से जवानी तक,गाँव में दिन भर उसके पीछे -पीछे डोलता था।उसका जिगरी यार है।

" भाई ! एक बार और कह दो कि गाँव से जगदीश आया है।" उसने चपरासी की चिरौरी की।

चपरासी अंदर चला गया और तुरंत लौट कर बोला -
"अंदर मीटिंग चल रही है।"

अनपढ़ रतनुवा का भी राजयोग निकला।विपक्षी पार्टी ने पर्दे के पीछे रहकर उसे निर्दलीय खड़ा कर विधान सभा की सीट जीत ली।और यही निर्दलीय सीट प्रदेश सरकार में, सरकार बनाने में निर्णायक साबित हुई।
हाथ में बी. ए.की डिग्री लेकर बड़ी उम्मीदों के साथ जगदीश, राजधानी पहुँचा।लँगोटिया यार रतनुवा के होते अब किस बात की चिंता ...

ऊपर सूरज ढलान पर है।उम्मीद भरी आँखों से चपरासी को देखते हुए जगदीश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। मानों कह रहा हो ,एक बार और उसके आने की खबर अंदर देदे।

कुदरत का कमाल चपरासी भी उसकी मौन की भाषा समझ गया।और बोला-
"तुम भी कहाँ खड़े होकर दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने की सोच रहे हो?"

" क्यों ? अब मेरा मित्र,इस लायक है कि चाहे तो कुछ भी कर सकता है।"जगदीश को अपनी ही आवाज़ अनजानी सी लगी।

" भाई ! ये कोई कृष्ण भगवान का महल थोड़े ना है।ये तो सियासत की ज़मीन है।यहाँ दोस्ती नहीं सिर्फ़ दग़ा मिलती है।" चपरासी ने जगदीश को दयनीय नज़रों से देखते हुए कहा।


जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् अप्रकाशित
नॉएडा-उत्तर प्रदेश

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 10:11am

आदरणीया जानकी जी , सियासत की हक़ीकत बयाँ करती आपकी कथा बहुत सुन्दर लगी , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:59am
सादर आभार डॉ.आशुतोष मिश्रा जी
Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:58am
हार्दिक आभार आ. तेज़ वीर सिंह जी
Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:57am
तहेदिल से शुक्रिया प्रिय राहिला
Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:56am
सादर आभार आ. विजय शंकर जी
Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:55am
सादर आभार आ. विजय निकोर जी
Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:54am
हार्दिक आभार राजेन्द्र कुमार दुबे जी
Comment by Janki wahie on July 12, 2016 at 7:53am
हार्दिक आभार अशोक कुमार जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 11, 2016 at 11:07pm
अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बढ़ायी स्वीकार करें आदरणीया जानकीजी
Comment by TEJ VEER SINGH on July 10, 2016 at 8:23pm

हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी! सुंदर लघुकथा !सत्य से रूबरू कराती प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service