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ममता और मौत की गलियाँ (लघु कथा ) जानकी बिष्ट वही

लगा कई दिन से छाए कुहासे बादल अपने सारे बन्धन तोड़ कर बरसने लगे।बिजली की कौंध और गरज़ से धरती काँपने लगी।ऊपर जंगल से बहते बरसाती नाले का उफान और शोर किसी के भी दिल को दहलाने के लिए काफी था।

शकुंतला ने अपनी पक्की छत वाले मकान में रज़ाई को कसकर लपेटते हुए सोचा - छोटा बेटा बिशनु अपनी घरवाली और बच्चों के साथ अपने कच्चे छप्पर में ठीक तो होगा ? बाप की जरा सी बात पर घर छोड़ अलग झोपड़ी बना कर रहने लगा। दिल कसकता है।उनके लिए।नींद आँखों से कोसो दूर थी।

" काहे करवट बदल रही हो ? लगता है आज तो प्रलय आ जायेगी।" धनीराम ने पत्नी को टोका।

माँ का मन, समझाये भी तो कैसे? नहीं माना तो बरसाती ओढ़ अँधेरे में कड़कती बिजली की रोशनी में भीगती हुई छप्पर तक पहुंची।अंदर का नज़ारा देख, चिंता की आग क्षण भर में बुझ गई और मन का सारा ममत्व पल भर में बिला गया। गुस्से की तेज़ लहर शकुन्तला के तन-बदन में फ़ैल गई।
बिशनु और रज्जो ज़मीन में हाथ पांव फैलाये चित् राजसी ख़र्राटे ले रहे थे।छप्पर जगह -जगह से टपक रहा था दोनों मासूम बच्चे सहमे से एक कोने में दुबके थे।

"नालायक कहीं के, दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं और रात होते ही शराब पीकर जो रास्ते मौत के मुँह में ले जाते हैं उनमे जीने की सोचते हैं।" बड़बड़ाती शकुंतला ने दोनों बच्चों को बाँहों में समेट घर की राह ली।


जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् अप्रकाशित
नॉएडा उत्तर प्रदेश

Views: 588

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Comment by Nita Kasar on July 12, 2016 at 9:08pm
माँ बच्चे कितने बड़े हो जाये उनकी परवाह करती है क्योंकि वह माँ जो है,बधाई आपके लिये आद०जानकी वाही जी ।
Comment by pratibha pande on July 12, 2016 at 7:54pm

' पुत्र कुपुत्र हो सकता है  माता कुमाता नहीं  होती '  बहुत अच्छे भावों को समेटे ताना बाना बुना है आपने इस रचना का ,..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर आदरणीय जानकी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 12, 2016 at 5:21pm
दो माँओं की परिस्थितियों का बख़ूबी चित्रण करती हुई नशे के कारण व परिणाम पर रोशनी डालती बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी।
Comment by Sushil Sarna on July 12, 2016 at 4:10pm

वाह आदरणीया जानकी बिष्ट वाही  जी यथार्थ को जताती इस संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Rahila on July 12, 2016 at 1:00pm

वाह..वाह,प्रिय दीदी क्या जानदार प्रस्तुति दी आपने ,माँ तो बस माँ है।बहुत बधाई इस सार्थक रचना के लिए ।सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 11:13am

बहुत बेहतरीन लघु कथा माँ की ममता को शब्दिक करती हुई | माँ बच्चों बिन जी नहीं पाती दिन रत उनकी फिक्र करती है मगर बच्चे ?

बहुत बहुत बधाई जानकी जी 

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