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बह्र : २२ २२ २२ २

जल्दी में क्या सीखोगे

सब आहिस्ता सीखोगे

 

एक पहलू ही गर देखा

तुम सिर्फ़ आधा सीखोगे

 

सबसे हार रहे हो तुम

सबसे ज़्यादा सीखोगे

 

सबसे ऊँचा, होता है,

सबसे ठंडा, सीखोगे

 

सूरज के बेटे हो तुम

सब कुछ काला सीखोगे

 

सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर

सबसे अच्छा सीखोगे

 

पहले प्यार का पहला ख़त

पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे

 

हाकिम बनते ही ‘सज्जन’

सब कुछ खाना सीखोगे

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on July 19, 2016 at 6:36pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , छोटी बह्र मे बहुत अच्छे शेर कहे हैं , दिल से बधाइयाँ आपको ।

सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर

सबसे अच्छा सीखोगे    -- बहुत खूब , हार्दिक बधाई ।      एक सम्भावना इस शेर र्मे और दिखी  द्खियेगा शायद पसंद आये ,

सीखोगे ख़ुद को पढ़कर

सबसे अच्छा सीखोगे    -   परिवर्तन के लिये नही यूँही सूझा तो लिख दिया ।

 

Comment by Sushil Sarna on July 19, 2016 at 4:54pm

पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे

वाह आदरणीय क्या अहसास हैं। ... बहुत खूब ... हार्दिक बधाई इस सुंदर प्रस्तुति पर।

कृपया ध्यान दे...

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