For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तिका: तुम क्या जानो ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

तुम क्या जानो

संजीव 'सलिल'

*

तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.

नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..

 

उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.

कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..

 

चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.

कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..

 

सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.

चैन रूह को मिलते देखा गजलों में, रूबाई में..

 

'सलिल' उजाला सभी चाहते, लेकिन वह खलता भी है.

तृषित पथिक को राहत मिलती अमराई - परछाँई में

 

***************

 

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:45pm
संत और बिच्छू दोनों ही. निज स्वभाव को नहीं तजें.
यह बचाए वह काटे, ज्यों निष्ठा चाहे हरजाई में..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 12, 2011 at 12:05am

सही कहा गुरुवर तभी तो पड़े-पड़े लें गंगा गोता 

झरझर पीपल छाँहीं ऊपर,  कुम्हलायें चरपाई में

Comment by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 8:50pm
सौरभ शतदल का पाकर ही सार्थक होता है जीना.
नेह नर्मदा नहा 'सलिल' ने सच पाया गहराई में..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 10, 2011 at 4:16pm

//सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.

चैन रूह को मिलते देखा गजलों में, रूबाई में..//

 

आचार्यवर,

वही छाँव है, वही उजाला जो तुमने स्पर्श किया है

छूदो मुझको मैं भी जीलूँ अलकों की अमराई में..

Comment by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 2:33pm
आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद. आपको रुचा तो मेरा कविकर्म सफल हुआ.

धीरज धरकर संजय बागी बना नहीं वीरेंद्र हुआ.
अभिनव अचल प्रकाश बिखेरे ऊषा की अरुणाई में..
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on May 10, 2011 at 1:58pm
बहुत ही अच्छी रचना संजीव जी.
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on May 10, 2011 at 1:58pm
बहुत ही अच्छी रचना संजीव जी.
Comment by Abhinav Arun on May 10, 2011 at 1:16pm
pranaam aachary jee behad sanjeeda khayalon kee rachna waah-
सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.

चैन रूह को मिलते देखा गजलों में, रूबाई में..

waah prabhaav purn.
Comment by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:43pm

उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.

कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..

 

aacharya ji...bahut bahut dhanyawad...aapka..itni achi rachna padhne ko mili...evm hardik badhai...

Comment by Dheeraj on May 10, 2011 at 12:32pm

चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.

कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..

 

.....................बहुत ही प्रिय और सहज ढंग से भावनाओ को पिरो कर यथार्थ दिखाई है ..... बहुत ही अच्छी रचना संजीव जी.
.......भाव स्वीकार करे

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service