For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तिका: मैं --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मैं
संजीव 'सलिल'
*
पुरा-पुरातन चिर नवीन मैं, अधुनातन हूँ सच मानो.
कहा-अनकहा, सुना-अनसुना, किस्सा हूँ यह भी जानो..

क्षणभंगुरता मेरा लक्षण, लेकिन चिर स्थाई हूँ.
निराकार साकार हुआ मैं वस्तु बिम्ब परछाईं हूँ.

परे पराजय-जय के हूँ मैं, भिन्न-अभिन्न न यह भूलो.
जड़ें जमाये हुए ज़मीन में, मैं कहता नभ को छूलो..

मैं को खुद से अलग सिर्फ, तू ही तू दिखता रहा सदा. 
यह-वह केवल ध्यान हटाते, करता-मिलता रहा बदा..

क्या बतलाऊँ? किसे छिपाऊँ?, मेरा मैं भी नहीं यहाँ.
गैर न कोई, कोई न अपना, जोडूँ-छोडूँ किसे-कहाँ??

अब तब जब भी आँखें खोलीं, सब में रब मैं देख रहा.
फिर भी अपना और पराया, जाने क्यों मैं लेख रहा?

ढाई आखर जान न जानूँ, मैली कर्म चदरिया की.
मर्म धर्म का बिसर, बिसारीं राहें नर्म नगरिया की..

मातु वर्मदा, मातु शर्मदा, मातु नर्मदा 'मैं' हर लो.
तन-मन-प्राण परे जा उसको भज तज दूँ 'मैं' यह वर दो..

बिंदु सिंधु हो 'सलिल', इंदु का बिम्ब बसा हो निज मन में.
ममतामय मैया 'मैं' ले लो, 'सलिल' समेटो दामन में..

********

Views: 491

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on May 24, 2011 at 7:36am
आशीष जी!
वंदे मातरम.
इस रचना में ऐसे शब्द कम ही होंगे जिन्हें आप न जानते हों. साहित्य को गंभीरता और प्रतिबद्धता के साथ लेनेवाले कम हैं. नव पीढ़ी के सामने पुरातन की थाती को समझने, उसमें से सार-सार ग्रहण करने, अपने समय की अनुभूतियों और स्थितियों को जोड़ने और भावी पीढ़े एके लिए सरता रच जाने की चुनौती है. यह हर युग में होती है. कठिनाई इस शिक्षा पद्धति ने पैदा की है. पूर्व प्राथमिक से अंगरेजी के शिशु गीत याद करने और अतिथियों को सुनवाने की कुरीति ने बच्चों को हिंदी से दूर किया है.  आगे विषयों की पढ़ाई के सामने भाषा गौड़ रह जाती है. यदि हिंदी का अनिवार्य प्रश्न पत्र न हो तो शायद युवा छात्र हिंदी बोल लिख भी न पायें. हम-आप जैसे सजग पाठक / कवि पढ़कर भी बहुत कुछ ग्रहण करते हैं. आपने रचना को समझा... सराहा... आभारी हूँ. संपर्क बना रहे.
Comment by आशीष यादव on May 23, 2011 at 8:28pm
इस महान कृति की रचना आप ही कर सकते है आचार्य जी| आप को कोटिशः नमन|
आप की बात भी सही है की इन रचनाओं के अर्थ ग्रहण करने वाले कम है| सबसे बड़ी बात तो यह है की शब्दों की बहुत कमी है हम लोगो को| फिर भी अर्थ ग्रहण करने की कोशिह्स करते रहते है|
Comment by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 3:11pm
ऐसी रचनाओं के भाव और अर्थ को ग्रहण करनेवाले पाठक कम ही मिलते हैं. आप दोनों को साधुवाद.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 10, 2011 at 2:56pm

//क्या बतलाऊँ? किसे छिपाऊँ?, मेरा मैं भी नहीं यहाँ.
गैर न कोई, कोई न अपना, जोडूँ-छोडूँ किसे-कहाँ??//

इस ब्रह्म स्वरूप के सकल भान को मेरा नमन.

अधोलिखित विशिष्टद्वैत स्वरूप भारत नहीं तो और क्या है? यही स्व है, यही मैं है, यही स्व में स्थ हो पूर्ण स्वस्थ होते जाने का निर्मल उद्घोष. ..  

//पुरा-पुरातन चिर नवीन मैं, अधुनातन हूँ सच मानो.

कहा-अनकहा, सुना-अनसुना, किस्सा हूँ यह भी जानो..//
आपके सद्विचारों से आप्लावित हुआ.. . सादर.

 

Comment by Abhinav Arun on May 6, 2011 at 11:08am
pranaam achaarvar bahut sundar sashakt rachna !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service