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बोलो न
कुछ तो बोलो न
देखो सुबह हो गयी है
आँखों के द्वार खोलो न
चिड़ियाँ भी बुला रही है
बाते उनसे भी कर लो न
मुर्गे ने तड़के बान लगाई
सुनकर उसको उठ जाओ न
बोलो न
कुछ तो बोलो न

ओस की बुँदे
चमक रही पत्तो पर
भीनी हो रही घांस भी
सौंधी सौंधी खुशबू मिट्टी की
उठकर तुम भी ले लो न
बोलो न
कुछ तो बोलो न ।

कलियां खिलने को है आतुर
सूर्य की रौशनी बढ़ रही है
झांक रहे बगुले कहीं पर
है भंवरों की गुंजन कहीं पर
खन खन चूड़ियाँ बज रही है
कहीं बह रहा नालियोँ में पानी ।
हो गयी है सुबह देखो
आँखे अपनी अब खोलो न
बोलो न
कुछ तो बोलो न

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 6:56pm
धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 6:54pm
धन्यवाद Dr. Ashutosh Mishra ji
Comment by Shyam Narain Verma on August 1, 2016 at 5:15pm
सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई  ..सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2016 at 3:51pm

आदरणीया कल्पना जी इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 2:05pm
आदाब जनाब समर साहब ।आपको कविता पसंद आई जानकर ख़ुशी हुई। सार्थक हुई यह रचना । तेह दिल से शुक्रिया ।सर
Comment by Samar kabeer on August 1, 2016 at 1:52pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत शानदार कविता लिखी आपने दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 12:56pm
धन्यवाद् आदरणीय तेज वीर जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on August 1, 2016 at 12:41pm

हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना जी! "बोलो न"  एक सुंदर कविता जिसमें क्या कुछ नहीं बोल दिया आपने! बेहतरीन प्रस्तुति!

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