कितना अच्छा होता .....
कितना अच्छा लगता है
फर्श पर
चाबी के चलते खिलौने देखकर
एक ही गति
एक ही भाव
न किसी से कोई गिला
न शिकवा
ऐ ख़ुदा
कितना अच्छा होता
ग़र तूने मुझे भी
शून्य अहसासों का
खिलौना बनाया होता
अपना ही ग़म होता
अपनी ही ख़ुशी होती
न लबों से मुस्कराहट जाती
न आँखों में नमी होती
सब अपने होते
हकीकत की ज़मीं न होती
ख़्वाबों का जहां न होता
बस ऐ ख़ुदा
तूने हमें भी वो चाबी अता की होती
तो न कोई तड़प होती
न कोई अरमां होता
न
ये
दिल
दर्द से आशना होता
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
आपकी आत्मीय बधाई एवम स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील सरना साहब सादर नमस्कार, बहुत सुंदर दिल को छूती रचना की है आपने. जिंदगी में कई बार ऐसी बातें हो जाती हैं की आदमी सोचता है वह खिलौना होता तो अच्छा होता. कोई भी यूं ही खिलौना हो जाना नहीं चाहता. बहुत-बहुत बधाई. सादर.
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
आपकी आत्मीय बधाई एवम स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
आपकी आत्मीय बधाई एवम स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीया rajesh kumari जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
आपकी आत्मीय बधाई एवम स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील भाईजी
मनुष्य की ऐसी किस्मत कहाँ कि वह सम भाव वाला खिलौना हो जाय । इस सर्वश्रेष्ठ रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए
आद० सुशील सरना जी,बहुत सुन्दर दिल तक पंहुचती आपकी ये रचना |बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें |
माह की सर्वश्रेष्ठ रचना में स्थान पाई इसके लिए दिल से बधाई |
आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब प्रस्तुति ने आपके दिल को स्पर्श किया , ये रचना के लिए गौरव की बात है। हार्दिक आभार सर।
आदरनीय सुशील भाई , अच्छी कविता हुई , हार्दिक बधाई आपको ।
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