इक माँ होती है ....
कितना ऊंचा
घोंसला बनाती है
नयी ज़िन्दगी का
ज़मीं से दूर
घर बनाती है
अपने पंखों से
अपने बच्चों को
हर मौसम के
कहर से बचाती है
न जाने कहाँ कहाँ से लाकर
अपने बच्चों को
दाना खिलाती है
पंख आते हैं
तो उड़ना सिखाती है
नए पंखों को
आसमां अच्छा लगता है
ज़मी से रिश्ता बस
सोने का लगता है
देर होते ही मां
घोंसले पे आती है
नहीं दिखते बच्चे
तो बैचैन हो जाती है
सांझ होते ही
घबराहट बढ़ जाती है
अपनी उड़ान का
घमंड लिए
बच्चे स्वतन्त्र हो जाते हैं
अपने ही घोंसले को
भूल जाते हैं
चिड़िया चोंच में दान लिए
वहीं बैठी रहती है
बच्चों को शायद
अब जरूरत न हो मगर
पंख अब भी
खाली घोंसले पर
फैले रहते हैं
बच्चे क्या जानें
ममता क्या होती है
वो पास रहें या दूर
वो सदा उनके पास होती है
पत्थर से हालातों को सहती
जो हर पल
मोम सी पिघलती है
वो इस जहां में
सिर्फ
इक माँ होती है
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
अपनी सहर
Comment
आ. समर कबीर जी कन्फर्म करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी प्रस्तुति में निहित मर्म को अपने स्नेहिल शब्दों से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।
अब जरूरत न हो मगर
पंख अब भी
खाली घोंसले पर
फैले रहते हैं
बच्चे क्या जानें
ममता क्या होती है
वो पास रहें या दूर
वो सदा उनके पास होती है...........वाह! मार्मिक और सुन्दर ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय सुशील सरना साहब. सादर.
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Harash Mahajan जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को दिली दाद से नवाज़ने का तहे दिल से शुक्रिया। सर कहर शब्द का सही शब्द 'कह' है या 'कह्र ' है। मेरे विचार में क ह्र होना चाहिए। आप ज्ञाता हैं कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें। अपने इस आम प्रचलित शब्द को सही बताया आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीया pratibha pande जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील भाई , माँ तो बस माँ होती है , खूबसूरत भाव पूर्ण प्रस्तिति के लिये हार्दिक बधाई आपको ।
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