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बिन पैंदी का लौटा (लघुकथा)

मैं न बदलूंगा
"तुम्हारे जैसा चमचा नहीं देखा आज तक । कितनी चापलूसी कर लेते हो तुम । और देखो तो दोनों मेनेजर तुम्हारी मुट्ठी में हैं ।" अ ने ब से कहा
"अब यह तो अपनी अपनी कला है । हाँ यह सच है दोनों मेनेजर मेरी बात मानते है । पर मैं चमचा हूँ यह कैसे कह दिया तुमने । "
" सुनो अ यह अपनी अकड़ अपने पास ही रखो । मैं ही नहीं सारा ऑफिस स्टाफ यही कहता है । सब बेवकूफ तो नही । वैसे तुम एक बिन पेंदी के लौटे हो । तुम्हारे जैसा बेशर्म इंसान नहीं देखा है मैंने सुना है एक मेनेजर ने तुमको घर बुलाया था और तुमने मैडम के कपड़े भी धोये और सर के जूते भी पोलिश किये । सारा स्टाफ थू थू कर रहा है । "
"हाँ किया था यह काम, तो क्या हुआ । बॉस के घर उनका ही तो काम किया । किसीके कुछ भी कहने से मैं क्यों बदलूँ । जैसा हूँ वैसे ही रहूंगा ।"
इतने में एक चपरासी उनके पास आकर कहता है ," ब बाबू आपको मेनेजर ने बुलाया है ।"
ब उनके केबिन में जाता है , वहाँ उसको एक लिफाफा पकड़ा दिया जाता है ।
" आपको नौकरी से निकाला जाता है । अगले हफ्ते से आपको ऑफिस आने की जरुरत नहीं ।"
"पर ......सर .... मेरी भी तो बात सुनिए । ऐसा क्या किया है मैंने !"
मेनेजर ने चिढ़ कर जवाब दिया ," तुम जूते साफ़ करने लायक ही हो ।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 11, 2016 at 9:06pm
धन्यवाद आदरणीय आशीष कुमार जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 11, 2016 at 9:05pm
धन्यवाद आदरणीया राजेश दीदी।
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 8:18pm
चापलूसी का यही अंजाम होता है
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 8, 2016 at 10:59am

बढ़िया कथा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 7, 2016 at 7:04pm

साहब ने आखिर उस चापलूस को उसकी  औकात दिखा ही दी  ये  तो  होना ही चाहिए था बहुत बढ़िया ऐसे लोगों को आईना दिखाती हुई लघु कथा बहुत बहुत बधाई कल्पना जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 6, 2016 at 10:06am
जी सखी । सादर धन्यवाद ।
Comment by Archana Tripathi on August 6, 2016 at 7:57am
लौटे नहीं लोटा शब्द सही हैं ।बढ़िया कथा पद की गरीमा रखना ही चाहिए अन्यथा परिणाम विपरीत ही मिलते हैं।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 7:55pm
Thank you sir for the approval.Regards

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