For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

निर्जन पगडंडी - एक नयी राह

" तुमसे कुछ भी कहना बेकार है । तुम कभी नहीं सुधर सकते । जाने कितनी बार जेल जा चुके हो , हर बार कहते हो बस यह आखरी चोरी है , फिर वही करने लग जाते हो । तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार वालों को जो परेशानियाँ होती है , तुमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया ......।"रमेश अपने दोस्त को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर वह दोस्त तो !!!
"बन्द करो अपनी शिक्षा दिक्षा नहीं सुनना तुमसे कोई भाषण । मेरी मर्ज़ी जो चाहूँ करूँ । बचपन से करते आया हूँ । घर में किसीने नहीं रोका अब यह मेरी बेरी बीवी जब से आई है पीछे पड़ गयी है । और तुम क्यों पीछे पड़ गए हो मेरे ! मैंने तुमसे तो नहीं कहा मेरे परिवार का ख्याल रखो ।" झल्लाकर दोस्त ने जवाब दिया ।
"करो जो करना चाहो पर दोस्त हूँ तुम्हारा क्या करूँ ! चाहता हूँ कि तुम सही रास्ते पर आ जाओ । तभी किसीने आवाज़ लगायी और कहा ," देखो चोर का बेटा भी अब तो चोरी करने लगा है ।अब एक ही घर में दो चोर ।"
रमेश के दोस्त ने बाहर आकर देखा तो उसका 10 वर्ष के बेटे के हाथ में बहुत सारे भरे हुए बटुवे थे । बच्चे के चहरे पर कोई शिकन न देखकर पिता के चहरे पर सलवटे आ गयी और उसने रमेश से कहा ,"तुम ठीक थे दोस्त , अब उस निर्जन पगडंडी पर चलने का वक़्त आ ही गया है ।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 770

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on August 7, 2016 at 1:24pm

अच्छा कथानाक सुगठित शिल्प में ..हार्दिक बधाई प्रेषित है  इस रचना पर  आदरणीया कल्पना जी 

Comment by Rahila on August 6, 2016 at 7:45pm
बहुत सार्थक रचना आदरणीया दीदी !खूब ,खूब बधाई।सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 7:14pm
जी आदरणीया कुछ व्यस्तता तो थी । आपको यह कथा पसंद आई सादर धन्यवाद आपका ।
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 5, 2016 at 6:29pm

 कल्पना सखी अच्छी कथा.  बीच मे जिम्मेदारियो से तुम्हारी कलम रूक गयी थी शायद . अब फ़िर चल पडी है. बधाई इस रचना के लिए

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 4:50pm
धन्यवाद आदरणीय शहज़ाद भाई ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 4:50pm
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 5, 2016 at 4:18pm
आपके उम्दा कथानकों के साथ लेखनी निरंतर प्रगति की ओर है। इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
Comment by Samar kabeer on August 5, 2016 at 3:37pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,इस उम्दा प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 2:39pm
भैया सेल से पोस्ट करने में दिक्कत होती है ।। सादर ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 5, 2016 at 2:19pm
बधाई आदरणीया दीदी।
पोस्ट के टाइटल में विधा का नाम लिखना भूल गई आप।बेरी=बैरी।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service