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पावन ही यदि भाव हो,तो पावन त्यौहार
सूत्र रक्षार्थ बाँधती, भाई को हर नार
भाई को हर नार,चाह रक्षा की रखती
हर भाई में नेक,मनुष वह हर पल लखती
सतविन्दर कविराय,विचारों का हो धावन
पूजित हो हर नार,रहे सबका दिल पावन।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 8, 2016 at 5:09pm
वांछित परिमार्जन करने का प्रयास किया है,एक बार पुनः दृष्टिपात कर कृतार्थ करें,श्रद्धेय सौरभ सर!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2016 at 12:06am

कुण्डलिया वस्तुतः दोहा औरोलाका सम्मिलित रूपहै. इसके अलावा नियमों के लिहाज से थोडा-बहुत और सचेत रहना पड़ता है.

इस हवाले से यह पंक्ति - रक्षार्थ सूत्र बाँधती .. को दोहा के विषम चरण का शब्द-संयोजन कैसे दे रहे हैं ?

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 22, 2016 at 1:39pm
आदरणीय कृष्ण गोपाल जी कुछ परिष्कार करने का प्रयास किया है कृपया पुनः अवलोकन कर कृतार्थ करें।मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 18, 2016 at 5:44pm
अनुमोदन के लिए सादर आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 18, 2016 at 3:47pm

मित्र रक्षा में चार मात्राये  होती हैं -रक्षा सूत्र है बाँधती----------करो सब मन का धावन-----इसका अर्थ स्पष्ट नहीं है ---- सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on August 18, 2016 at 12:54pm
सुन्दर सार्थक रचना  ने लिये आपको बधाई ….

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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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