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ताटंक छ्न्द
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1.उमर बढ़ी पर प्रीत लगाई,अब दूजी से जाने क्यों
नहीं पराई औरत है वह,बीवी इसको माने क्यों
पूरा दिन ही गिटर-पिटर बस, फोन लिए करते जाते
मुझे भुलाकर बात उसी से,ध्यान दिए करते जाते
2.
मैंने बोला नहीं दूसरी,लगा मीडिया प्यारा है
इसपे ही लिखता रहता हूँ,यह अच्छा औ न्यारा है
बोल पड़ी झटसे मुझसे वह,मुझको भी दिखलाओ तो
कैसे करते काम इसी पर,थोड़ा सा समझाओ तो
3.
उसे जरा सा यह मैंने तोे,बस यूँ ही बतलाया था
कैसे सोशल हम हो जाते,बस इतना समझाया था
लगी रहे अब वह सारा दिन,फोन नहीं मिल पाता है
तंग रहे दिल उसे देखकर ,अबतो बस घबराता है

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 1, 2016 at 4:34pm
आदरणीय गोपाल सर परिमार्जित कर लिया है।मार्गदर्शन हेतु आभार ।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 1, 2016 at 4:34pm
आदरणीया प्रतिभा जी प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन हेतु आभार सँग नमन।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 23, 2016 at 8:16pm

आदरणीय सतविंदर जी / सही शब्द तंग है बाकी आप स्वयम देख लें . सादर .

Comment by pratibha pande on August 23, 2016 at 9:46am

 छन्दों पर खूब  अभ्यास चल रहा है आपका.. विषय  भी रोचक चुना है  बधाई आपको आदरणीय सतविंदर जी ..  ' इसपे'  को' इस पर '   कर लेना ठीक होगा  

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 23, 2016 at 7:05am
अनुमोदन कर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर साहब। सादर नमन!
Comment by Samar kabeer on August 22, 2016 at 3:24pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,आपके छन्द पसन्द आये,बधाई स्वीकार करें ।

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"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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