For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल (पुरस्कारों को इंगित) (मनन)

2122 2122 2122 2


मर रहे क्यूँ नाम के अखबार की खातिर
कब बने तमगे कहो फनकार की खातिर।1

लिख रहे जो बात कुछ भी काम आये तो
गर बहें आँसू किसी दरकार की खातिर।2

चाँद-सूरज जल रहे फिर मोम गलती है,
रूठते हैं कब भला उपहार की खातिर।3

बाढ़ आती है जहाँ कुछ- कुछ पनपता है
है कहाँ सब लाजिमी घर-बार की खातिर।4

खुद खुशी हित थी लिखी बहु जन मिताई ही
लिख रहे कुछ लोग निज उपकार की खातिर।5

शोखियों का शौक रखते बदगुमां कुछ हैं
कौन मरता है यहाँ आभार की खातिर।6

छेंकते कागज सियाही भी बिदकती है
लिख रहे आतुर मुए 'सरकार' की खातिर।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 23, 2016 at 10:50pm
आपके सलाम के जवाब में बहुत सी दुआएं,हमेशा ख़ुश रहिये,'असातज़ा'मतलब उस्ताद शायर ।
Comment by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 7:29pm
अा.समर साहब,मेरा सलाम कबूल फरमायें।
Comment by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 7:27pm
आभार आदरणीय समर साहब,आपकी सलाह हमेशा माकूल हुआ करती है।वैसे 'असातजा' का मतलब मैं नहीं समझ पाया,सादर।
Comment by Samar kabeer on August 23, 2016 at 6:17pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
अभ्यास करते समय हमेशा रवां बहरों का इंतिख़ाब करना चाहिए,अल्फ़ाज़ की बंदिश का भी खयाल रखना चाहिए,अपनी बनाई हुई ज़मीनों से पहले असातज़ा की बनाई हुई ज़मीनों पर अभ्यास कीजिये,आपके फ़न पर निखार आजायेगा,उसके बाद अपनी बनाई हुई ज़मीनों में ग़ज़ल का नम्बर आएगा,उम्मीद है आप मेरा इशारा समझ गए होंगे ।
Comment by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 1:43pm
आदरणीय गिरिराज भाई, आपका बहुत बहुत आभार! आपकी हैसला आफजाई और प्रेरणा का कायल हूँ।देखता हूँ कि और क्या किया जा सकता है,नमन!
Comment by Manan Kumar singh on August 23, 2016 at 1:38pm
आभार आपका आ.सुरेश जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 12:34pm

आदरणीय मनन भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये । मिसरों के राबते पर और समय देना चाहिये था ऐसा लगता है , देखियेगा अगर कुछ बात बन सके तो , कुछ ख़टक रहा है लेकिन कोई क्या ख़टक रहा है पूछे अगर तो मै बताने मे असमर्थ हूँ ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 23, 2016 at 10:53am
चाँद सूरज जल रहे फिर मोम गलती है
रूठते हैं कब भला उपहार की खातिर।
वाह! आदरणीय बहुत खूब। बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service