ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )
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मफऊल-फ़ाइलातुन -मफऊल-फ़ाइलातुन
आग़ाज़े इश्क़ कर के अंजाम तक न पहुंचे ।
कूचे में सिर्फ पहुंचे हम बाम तक न पहुंचे ।
फ़ेहरिस्त आशिक़ों की देखी उन्होंने लेकिन
हैरत है वह हमारे ही नाम तक न पहुंचे ।
उसको ही यह ज़माना भूला हुआ कहेगा
जो सुब्ह निकले लेकिन घर शाम तक न पहुंचे ।
बद किस्मती हमारी देखो ज़माने वालो
बाज़ी भी जीत कर हम इनआम तक न पहुंचे।
साक़ी से जिसने छीना साग़र हुआ उसी का
जो मांगते रहे मय वह जाम तक न पहुंचे ।
दहशत पसंद है वह मुस्लिम कहो न उसको
नामे जिहाद ले जो इस्लाम तक न पहुंचे ।
तस्दीक़ उनको मंज़िल उल्फत की क्या मिलेगी
राहे वफ़ा में जिनके अक़्दाम तक न पहुंचे ।
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।
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