ग़ज़ल
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(मफऊल -फाइलात -मफ़ाईल -फाइलुन )
सबको पता है तुझको मेरे दिल ख़बर कहाँ ।
वह डालते हैं सब पे करम की नज़र कहाँ ।
जैसे ही सामना हुआ मेरे हबीब से
बदली में छुप गया है न जाने क़मर कहाँ ।
हातिम की बात हर कोई करता तो है मगर
आता है उसके जैसा नज़र अब बशर कहाँ ।
खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ
जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ मेरा उम्र भर कहाँ
मेरे जुनूने इश्क़ की है दास्ताँ यही
चौखट कहाँ है यार की और मेरा सर कहाँ ।
कर इस जगह से कूच ये मंज़िल नहीं तेरी
तस्दीक़ तेरा ख़त्म हुआ है सफर कहाँ ।
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरम जनाब सुरेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
मोहतरम जनाब सुनील प्रसाद साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
मोहतरम जनाब सौरभ साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी
रवायती अंदाज़ और इस मिजाज़ का एक अलग ही सुरूर हुआ करता है ! एक अच्छी ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल फ़रमायें आदरणीय तस्दीक साहब
मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मोहतरम जनाब शकूर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
खाते हैं संग कूचे से जाते नहीं कहीं
होता है इश्क़ वालों को दुनिया का डर कहाँ
जो दो क़दम भी साथ मेरे चल नहीं सका
वह दे सकेगा साथ मेरा उम्र भर कहाँ
बहुत खूब आदरणीय तस्दीक साहिब .... बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे हैं अपने ... इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए दिल से मुबारक कबूल फरमाएं सर।
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