ग़ज़ल ( अंजाम तक न पहुंचे )
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मफऊल-फ़ाइलातुन -मफऊल-फ़ाइलातुन
आग़ाज़े इश्क़ कर के अंजाम तक न पहुंचे ।
कूचे में सिर्फ पहुंचे हम बाम तक न पहुंचे ।
फ़ेहरिस्त आशिक़ों की देखी उन्होंने लेकिन
हैरत है वह हमारे ही नाम तक न पहुंचे ।
उसको ही यह ज़माना भूला हुआ कहेगा
जो सुब्ह निकले लेकिन घर शाम तक न पहुंचे ।
बद किस्मती हमारी देखो ज़माने वालो
बाज़ी भी जीत कर हम इनआम तक न पहुंचे।
साक़ी से जिसने छीना साग़र हुआ उसी का
जो मांगते रहे मय वह जाम तक न पहुंचे ।
दहशत पसंद है वह मुस्लिम कहो न उसको
नामे जिहाद ले जो इस्लाम तक न पहुंचे ।
तस्दीक़ उनको मंज़िल उल्फत की क्या मिलेगी
राहे वफ़ा में जिनके अक़्दाम तक न पहुंचे ।
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल पसंद करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
वाह बेहतरीन ग़ज़ल एक एक शेर ह्रदय तक पहुँचता हुआ नमन है लेखनी को
मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी ---
मोहतरम जनाब हर्ष महाजन साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ,महरबानी ---
आग़ाज़े इश्क़ कर के अंजाम तक न पहुंचे ।
कूचे में सिर्फ पहुंचे हम बाम तक न पहुंचे ।
वाह दिल खुश हो गया आदरणीय .... कितनी खूबसूरत बात कितनी सहजता से कह गए ... दिल से दाद कबूल फरमाएं सर।
आ० Tasdiq Ahmed Khan जी बहुत ही खूब...!! बेहतरीन पेशकश..!!
सादर !!
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
मोहतरम जनाब अरुण कुमार साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
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