ग़ज़ल
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फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन
चाहता है सिर्फ़ दिल मेरा ये मंज़र देख कर ।
फोड़ लूँ मैं अपनी आँखें उनको मुज़्तर देख कर ।
ज़िन्दगी में भी वो आजाएं जो मेरे दिल में हैं
सोचता रहता यही हूँ उनको अक्सर देख कर ।
हर किसी के पास तो होता नहीं ख़ुद का मकाँ
किस लिए हैं आप हैराँ मुझको बे घर देख कर ।
किस में हिम्मत है बढाए दोस्ती का हाथ जो
आस्तीं में आपकी पोशीदा खंज़र देख कर ।
फिर मुसीबत ना गहानी आने वाली है कोई
ऐसा लगता है मुझे उन्से सितमगर देख कर ।
हम हैं वह साजिद जो हर दहलीज़ पर झुकते नहीं
सौदे बाज़ी कर अमीरे शहर तू सर देख कर ।
कर दिया तस्दीक़ उनको दोस्तों ने बद गुमाँ
हो रहा है यह गुमाँ साजन के तेवर देख कर ।
उन्स ------मुहब्बत
मुज़्तर ---बे क़रार
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरम जनाब शकूर साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
मुहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद साहब आपकी ग़ज़ल पर कुछ सार्थक चर्चाएँ हुईं हैं पाठकों को ज़रूर फायदा मेरी तरफ से बधाई आपको इस रचना के लिए
मोहतरम जनाब सुरेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , वाक़ई रंगे सितमगर से मिसरा अच्छा लग रहा है , बहुत बहुत शुक्रिया ---
मोहतरम जनाब रवि साहिब ,ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया -----मश्वरे के लिए शुक्रिया , उन्से सितमगर की जगह हुब्बे सितमगर कर लिया है ---मिहरे सितमगर भी हो सकता है
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