22 22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
ज्यूँ तालों में रुका हुआ पानी, गंदा तो है ही
राजनीति में नीति नहीं तब वो धंधा तो है ही
अब भाषा की मर्यादा छोड़ें, गाली भी दे लें
अगर विरोधों मे फँस जायें तो दंगा तो है ही
दिखे केसरी, हरा न दीखे. तो फिर कानूनों में
घुसा हुआ कोई बन्दा निश्चित अंधा तो है ही
डरो नहीं ऐ भारतवासी पाप करम करने में
मैल तुम्हारे धोने को अब माँ गंगा तो है ही
सारे झूठे , हाथों में पत्थर ले कर निकलें हैं
अगर मिला ना सच्चा कोई ये बन्दा तो है ही
फोकट डर के आप करें न मन छोटा कर्ता के
देश विदेशों से आया आखिर चंदा तो है ही
ये संस्कारी है तो इसको ही सुननी है बातें
उसका क्या है वचन करम से वो नंगा तो है ही
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
वाह ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी
आदरणीया प्रतिभा जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका
आदरनीय रवि भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार , मुझे आ. समर का सुझाया मिसरा पहले ही स्वीकार है , बात केवल ये जानने के लिये हुई है , डरो नहीं ऐ भारतवासी -- व्याकरण के अनुसार सही है या गलत ।
आदरनीया कांता जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ।
डरो नहीं ऐ भारतवासी पाप करम करने में
मैल तुम्हारे धोने को अब माँ गंगा तो है ही..... वाह ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी .इस शानदार ग़ज़ल के लिए
आदरणीय तस्दीक भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरनीय समर भाई , आप की सलाह बिलकुल सटीक है , मुझे स्वीकार है । लेकिन एक बात रह ही जायेगी कि क्या मेरा मिसरा सच मे गलत है , इसलिये सुधार दो एक दिन बाद करूँगा , वही जो आपने सुझाया है ।
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