तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें
1222 1222 122
*****************************
ये रिश्ते भी न बदतर होके लौटें
तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें
ये चट्टानें , न ऐसा हो कि इक दिन
मैं टकराऊँ तो कंकर हो के लौटें
इसी उम्मीद में कूदा भँवर में
मेरे ये डर शनावर हो के लौंटें
बनायें ख़िड़कियाँ दीवार में जब
दुआ करना, कि वो दर हों के लौटें
दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की
मै छोड़ आया कि वो घर हो के लौटें
कुछ इक सूखी निगाहें ऐ ख़ुदा, मैं
रखूँ उम्मीद क्या , तर हो के लौटें ?
नहीं कुछ भी यक़ीं , पर भेजता हूँ
मेरे ये मसअले सर हो के लौटें
********************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की
मै छोड़ आया कि वो घर हो के लौटें........वाह ! वाह !
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
आदरणीय बृजेश भाई,सराहना के लिये आपका शुक्रिया।
शानदार ग़ज़ल आदरणीय
आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीया अलका जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका आभार
आदरणीय विजय भाई , भावों और विचारों की सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरनीय मनन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
आदरनीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।
आदरनीया कल्पना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online