For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही गज़ल - वो मिरी ताज़ीम में दीवारो दर का जागना “ ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122    212

एक दिन है शादमानी की लहर का जागना

रोज़ ही फिर देखना है चश्मे तर का जागना

 

देख लो तुम भी मुहब्बत के असर का जागना

चन्द लम्हे नींद के फिर रात भर का जागना

 

चाँद जागा आसमाँ पर, खूब देखे हैं मगर

अब फराहम हो ज़मीं पर भी क़मर का जागना

 

बाखबर तो नींद में गाफ़िल मिले हैं चार सू

पर उमीदें दे गया है बेखबर का जागना

 

सो गये वो एक उखड़ी सांस ले कर , छोड़ कर

और हमको दे गये हैं उम्र भर का जागना

 

अधमरी सी पैर तुरबत में दिये जो थी पड़ी

वज़्ह तुमको ख़ुद कहेगी उस ख़बर का जागना

 

जब चला तन्हा तो राहें काटतीं थीं खार बन

पर दिलाशा दे रहा था हम सफर का जागना

 

लपलपा कर बुझ गया दीपक, न देखा फिर भी वो

भोर की अरुणाइयों में कोई घर का जागना

 

रात को जो रात समझे कौन ऐसा है बचा

कोई जानेगा नहीं क्या अब सहर का जागना

 

खो गई बीनाई मेरी ताब से महताब की

हाय ! ऐसे बेरहम तीर –ए- नज़र का जागना

 

क्या करूँ मै याद करके, था गुमाँ जो, है गुमाँ

“ वो मिरी ताज़ीम में दीवारो दर का जागना “

*************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 437

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 2:08pm

वाहह आदरणीय वाहह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है नमन है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2016 at 8:55pm

वाह वाह ! टंकण त्रुटियाँ ठीक कर लें. 

 

आदरणीय गिरिराज भाई, कल इलाहाबाद के अदबघर में आयोजित तरही मुशायरे में करीब ४० शुअरा में से आधे ने इसी मिसरे पर ग़ज़लें कहीं थीं. समाँ बँध गया था. 

शुभ-शुभ

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 12, 2016 at 8:22pm

मोहतरम जनाब  गिरिराज   साहिब    , अच्छी ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---शेर नंबर 9  में तक़ाबुले रदीफेंन को दोष आरहा है ,देख लीजियेगा 

Comment by Samar kabeer on September 11, 2016 at 2:49pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
सातवें शैर के सानी मिसरे में 'दिलाशा' को "दिलासा"कर लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
2 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service