चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी
2122 1212 22 /112
बात जो अनकही सी लगती थी
वो ही बस ज़िन्दगी सी लगती थी
मर गई सरहदों के पास कहीं
सच कहूँ, वो खुशी सी लगती थी
हाँ , न थे गर्द आसमाँ में, तब
चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी
रात भी इस क़दर न थी तारीक
उसमें कुछ रोशनी सी लगती थी
दुँदुभी साफ बज रही थी उधर
पर इधर बाँसुरी सी लगती थी
थी तबस्सुम जो उसकी सूरत पर
जाने क्यूँ बेबसी सी लगती थी
थी बनावट भी उस जमाने में
यूँ कि, वो सादगी सी लगती थी
******************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी शानदार ग़ज़ल हेतु बधाई प्रेषित है । सादर !!
आदरणीय सुशील सरना भाई , ग़ज़ल की मुखर सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
बात जो अनकही सी लगती थी
वो ही बस ज़िन्दगी सी लगती थी
मर गई सरहदों के पास कहीं
सच कहूँ, वो खुशी सी लगती थी
वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब क्या मंज़रकशी की आपने .... दिल खुश हो गया ऐसे अशआर पढ़ कर .... इन अहसासों का सृजन करती आपकी कलम को सलाम सलाम सलाम।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online