1222 1222 1222 1222
मुख़ालिफ इन हवाओं में ठहरना जब ज़रूरी है
चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है
रुला देना, रुलाकर फिर हँसाने की जुगत करना
सियासत है , सियासत में यही करतब ज़रूरी है
उन्हें चाकू, छुरी, बारूद, बम, पत्थर ही दें यारो
तुम्हें किसने कहा बे इल्म को मक़तब ज़रूरी है
तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी
फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है
पतंगे आसमाँनी हों या रिश्ते हों ज़मीनों के
यहाँ पर ढील भी, जानें कि, देना कब ज़रूरी है
वो दे कर ज़ह्र,.. मेरा वक़्त में करते हैं चारा भी
मेरा मरना, मेरा जीना उन्हें तो सब ज़रूरी है
हवा की सरसराहट को भी कुत्ते भाँप सकते हैं
तो फिर इंसाँ तो ये जाने बयाँ क्या?..कब ज़रूरी है
अगर अंजाम हर इक ज़िन्दगी का मौत ही है, तो
तुम्हीं कह दो, कहाँ ,कैसे ,किसीको रब ज़रूरी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आअका हार्दिका आभार ॥
आदरनीय मनन भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
आदरणीय काली पद भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार
आदरणीय विजय भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
अदरणीय कंवर करतार भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया आपका । आपकी सलाह उचित है , आपका हृदय से आभार ।
तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी
फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है........बहुत सुन्दर ग़ज़ल रचना हुई है
भाई गिरिराज भंडारी जी अति सुंदर ग़ज़ल हुई है बधाई कबूल करें I आप बहुत उच्च कोटि के शायर हैं Iमैं तो अभी ग़ज़ल सीख रहा हूँ Iआपको सुझाब देने के स्तर पर नहीं हूँ I पर आपके इस सुंदर शे'र .......कि/...
"हवा की सरसराहट को भी कुत्ते भौंक सकते हैं
मगर इंसाँ तो ये जाने बयाँ क्या?..कब ज़रूरी है"
मैं इसके ऊला मिसरे को अगर इस तरह पढूँ तो कैसा रहेगा ....
"हवा की सरसराहट पे भी कुत्ते भौंक देते हैं"
आपका हर शे'र लाजबाब बन पाया है Iकोटिश बधाई बन्धुवर I
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